पुनरुत्थान से प्रेरित

पुनरुत्थान के कारण, सब बातें संभव हैं।


प्रस्तावना

"हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता का धन्यवाद हो, जिसने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया..." 

– १ पतरस १:३

"... परमेश्‍वर से सब कुछ हो सकता है।"

– मत्ती १९:२६ 

"यह सुनिश्चित करने के बाद ही कि यीशु मर चूका है, सिपाहियों ने उसकी देह को क्रूस से उतारने की अनुमति दी।

दिन ढलने पर उसकी  देह कब्र में रखी गई जिस पर एक बड़ा पत्थर रखकर मुहर लगा दी गई।

धार्मिक अगुओं के कहने पर, कब्र की रखवाली के लिए पहरेदार बैठा दिए गए। यीशु से प्रेम करनेवालों के लिए यह बड़ी उलझन और दुःख का समय था।

यीशु की क्रूस पर चढ़ाए जाने के तीसरे दिन की सुबह, कुछ स्त्रियाँ कब्र पर गईं।

वे सबसे पहले नहीं आई थीं। उससे पहले बड़ी भोर को स्वर्ग से परमेश्वर का एक स्वर्गदूत वहाँ पर उतर आया था। जो पहरेदार कब्र की रखवाली कर रहे थे वे बहुत डर गए और स्वर्गदूत ने उस पत्थर को हटा दिया जिससे प्रवेश-द्वार बंद था।

कब्र खाली थी! जैसे की उसने वचन दिया था, यीशु मृतकों में से जी उठा था!"

– "आशा" अध्याय ११

ध्यान से देखें और विचार करें

पिछले कुछ पाठों के द्वारा यीशु के पुनरुत्थान के विषय में कुछ "मांसदार" शिक्षाओं को समझा गया है।  आइए, उन पाठों में जिन बातों पर हमने विचार किया था उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन में ढालते हैं।  उपर्युक्त आशा से उद्धृत अंश को पढ़ते हुए और जो आप पहले से ही सीख चुके हैं, उन पर विचार करते हुए आप स्वयं को उन लोगों के स्थान पर रखें जो यीशु से प्रेम करते थे। उन लोगों के लिए जो यीशु से प्रेम करते थे, यह एक बड़ी उलझन और दुख का समय था। 

यीशु ने अपने अनुयायियों के हृदयों और मनों को आशाओं और सपनों से भर दिया था। यह केवल एक लोकप्रिय धार्मिक अगुआ नहीं था जिसे कब्र में दफ़नाया जा रहा था; यह वही एकमात्र जन था जिसने उनके जीवनों के प्रत्येक आयाम को अर्थ और उद्देश्य दिए थे । जब उसकी मृत्यु हुई तो उन जीवनों में भी कुछ मर गया था। उनके जीने का कारण उस विशाल पत्थर के पीछे दफन था जिसने उसकी कब्र के प्रवेश द्वार को बंद कर रखा था।

क्या आपने कभी अपने किसी ऐसे सपने के मरने का अनुभव किया है जिसने आपके जीवन को प्रेरित किया हो और उसे एक अर्थ दिया हो? हो सकता है किसी ने आप से कहा हो कि आपके सपने को पाना असंभव है, या फिर आपके जीवन की परिस्थितियाँ बदल गई हों, या इतनी कठिन हो गई हों कि आप को अपने सपने को पूरा कर पाने का कोई मार्ग ही न दिखाई दे रहा हो। चाहे जो कुछ भी बदला हो, किंतु जब बदलाव आया तो ऐसा लगा मानो आपके सपने को पूरा करने की सभी आशाएँ भी मर गई हों। 

निःसंदेह, हम जानते हैं कि, जैसा कि हम पुनरुत्थान के विवरण में आगे पढ़ते हैं कि, यीशु जी उठा था, और इसलिए उन लोगों की आशाएँ भी जी उठी थीं जो उस से प्रेम करते थे! किंतु सभी धर्मशास्त्रों से परे, इसकी वास्तविकता के सभी प्रमुख ऐतिहासिक प्रमाण के परे, यीशु के पुनरुत्थान के विषय में कुछ अत्यधिक व्यक्तिगत बात भी है। पुनरुत्थान के ही कारण हम जान सकते हैं कि परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! चाहे कोई कुछ भी कहे, चाहे आपकी परिस्थितियाँ कितनी ही विषम क्यों न हों, भले ही आपको ऐसा प्रतीत हो कि आपका सपना मर गया है... परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! मृतकों में से यीशु के पुनरुत्थान निराशा से भरे जीवन में आशा भर देता है!

पूछें और मनन करें 

  • क्या आपने अपने किसी अनमोल सपने के मरने का अनुभव किया है? वह सपना आपके लिए क्या मायने रखता था? वह क्यों मर गया? आपको कैसा लगा जब वह मर गया? आज आप उसके बारे में कैसा महसूस करते हैं?
  • क्या आपके जीवन में कुछ ऐसा है जो अधूरा रह गया है- कुछ ऐसा जिसके पूरे होने की आशा आप छोड़ चुके हैं? यद्यपि हर एक सपना जो हम देखते हैं, या हर एक आशा जिसके पूरे होने की हम आकांक्षा करते हैं, परमेश्वर की ओर से नहीं होती है, तथापि यह संसार उन सपनों और आकांक्षाओं के लिए भी अनुकूल स्थान नहीं है जो परमेश्वर हमारे हृदय में रखता है। कभी-कभी किसी सपने का मरना आवश्यक होता है, ताकि जब वह फिर से जी उठे, तब हम जान सकेंगे कि वह परमेश्वर की ओर से था, और उस परमेश्वर को महिमा मिलेगी।  क्या आपके जीवन में कुछ ऐसा है जिसे फिर से जी उठने की आवश्यकता है? वह क्या हो सकता है?

निर्णय लें और करें 

आपने आज इस पाठ में जो पढ़ा है हो सकता है उसके बाद,आपको थोड़ा समय अलग से निकालने की आवश्यकता हो और साथ ही परमेश्वर से यह विनती करने की आवश्यकता भी हो कि वह आपके हृदय से बातें करें। हो सकता है जो सपने परमेश्वर ने आपके हृदय में रखे थे, वे इतनी गहराई में दफ़न हो चुके हों कि आप उन्हें देख भी नहीं पा रहे हैं। हो सकता है कि आपने हार मान ली हो या आप उन्हें भूल चुके हों - किंतु स्मरण रखें: कोई भी कब्र इतनी बड़ी नहीं है जिसमें परमेश्वर के पुनरुत्थान की सामर्थ्य समा सके! उस सामर्थ्य को अपने संदेह या डर के बोझ को हटाने दें, और उन सपनों को पुनर्जीवित करें जो परमेश्वर ने आपको दिए हैं। प्रार्थना करें कि परमेश्वर की वास्तविकता आपकी वास्तविकता बन जाए। 

यदि आपको इससे सहायता मिलती हो तो निम्नलिखित प्रार्थना को अपनी प्रार्थना बनाने पर विचार करें :

सर्वशक्तिमान पिता परमेश्वर,

मैंने आप के इकलौते पुत्र यीशु मसीह के पुनरुत्थान में आपकी सामर्थ्य को प्रकट होते देखा है। आप वास्तव में, असंभव को संभव बनाने वाले परमेश्वर हैं। मृत्यु और दुःख मर्मभेदी होते हैं, किंतु यीशु ने कहा था, "मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है; परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।" जो मुझे आशाहीन और अंत लगता है, हो सकता है आपको न लगता हो । मैंने ................... खो दिया है, परंतु क्योंकि आप पुनरुत्थान के परमेश्वर हैं, मैंने आप में आशा नहीं खोई है। यह आपके महान प्रेम के कारण ही है कि मैं यहाँ यह प्रार्थना कर रहा / रही हूँ। आपकी दया अमर है। प्रति भोर वह नई होती रहती है (विलापगीत ३:२२-२३)। मैं आपसे विनती करता/ करती हूँ कि मेरे जीवन में उन बातों को पुनर्जीवित करें जो आपको महिमा देंगी! मैं यीशु की खाली कब्र आशा रखने के कारण के रूप में देखूँगा और अपने जीवन के हर दिन आप पर अपना विश्वास रखता रहूँगा। 

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Scripture quotations taken from the NASB