यीशु की सेवकाई - शिक्षा और आश्चर्यकर्म

यीशु स्वयं को साबित करता है।


प्रस्तावना

"और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं।"

– यूहन्ना २१:२५

"यही काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं कि पिता ने मुझे भेजा है।"

– यूहन्ना ५:३६ 

"जब यीशु और उसके चेले देश के विभिन्न भागों में यात्रा करते थे, लोग उसके चारों ओर इकठ्ठे हो जाते। वह एक निपुण वक्ता था। कई रोचक कहानियों और उदाहरणों के द्वारा यीशु लोगों को परमेश्वर के मार्ग के बारे में बताता था, उनसे उस मार्ग पर चलकर जीवन बिताने को कहता।उसने घमंडी मन वालों को उनके दोष का बोध कराया। उसने परमेश्वर द्वारा भेजे गए व्यक्ति के अधिकार के साथ बात की, परंतु वह केवल बातें करनेवाला व्यक्ति नहीं था। 

यीशु बहिष्कृत तथा टूटे मन वालों से करुणा रखता था। अपने आश्चर्यकर्मों के द्वारा यीशु ने अपनी करुणा व्यक्त की और अपना अधिकार सिद्ध किया। उसने तूफानों को शांत किया और पानी पर चला। दो अवसरों पर उसने केवल कुछ रोटियों और मुठ्ठी भर मछलियों को लिया, और उन्हें गुणा कर हजारों लोगों को खिलाया। यीशु ने अंधों को दृष्टि दी, लंगड़ों को चलाया और भयंकर बीमारी से ग्रसित लोगों को चंगा किया। उसने लोगों के अंदर से दुष्टात्माओं को निकाला। उसने मुर्दों को भी जिलाया।तीस वर्ष तक, यीशु अचर्चित रहा। और अब वह भौतिक व आत्मिक संसार पर, जीवन और मृत्यु पर, अपनी सामर्थ्य को प्रकट कर रहा था।"

– "आशा" अध्याय ९ 

ध्यान से देखें और विचार करें

उसके बपतिस्मे और उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान के बीच के तीन वर्षों के दौरान, यीशु ने लोगों के मध्य सेवकाई करते हुए इब्रानियों के समस्त देश में यात्रा की। लोगों के मध्य यीशु की सेवकाई के दो मुख्य पहलु थे। पहला पहलु था - उसकी शिक्षाएँ या उपदेश।

जैसे-जैसे हम बाइबल में यीशु की शिक्षाओं के बारे में पढ़ते हैं, हमें पता चलता है कि वे अधिकारपूर्ण (मत्ती  7:29, मरकुस  1:22, लूका  4:32) और ज्ञान तथा बुद्धि-कौशल (मत्ती  13:54, मरकुस  6:2). Amazed ((मत्ती 7:28, मरकुस  1:22, लूका  4:32) जैसी विशेषताओं से सुसज्जित थीं। अचरज (मत्ती  13:54, (मत्ती  22:33, मरकुस  6:2, मरकुस  11:18) शब्द उन लोगों की प्रतिकिया का वर्णन करते हैं जो यीशु के उपदेश सुनते थे। यहाँ तक कि उन लोगों के मध्य भी जो इस बात पर संदेह करते थे कि यीशु ही प्रतिज्ञा किया हुआ छुड़ानेवाला है, उसकी शिक्षाओं को उल्लेखनीय माना जाता था। यीशु का "पहाड़ी उपदेश" और अन्य कई दृष्टान्तों 1 को संसार के महानतम ज्ञान साहित्यों में से एक माना जाता है।  

यीशु की सेवकाई का दूसरा पहलू उसके द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों से संबंधित था। आज का अधिकांश पाठ यीशु के आश्चर्यकर्मों के सन्दर्भ में है। लेकिन इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, आइए कुछ शब्दों की परिभाषा जान लें। आधुनिक शब्द "चमत्कार" लातिनी शब्द 'मिराकुलम' से लिया गया है, जिसका अर्थ है, "एक आश्चर्य" या "कुछ अद्भुत।"2 बाइबल में, ऐसे चार शब्द हैं (दो इब्रानी और दो यूनानी), जिनका अनुवाद "आश्चर्यकर्म" शब्द के रूप में किया गया है। इन चारों में से प्रत्येक स्थिति में, ये शब्द परमेश्वर द्वारा एक ऐसी बिचवाई का वर्णन करते हैं जिसमें प्रकृति के सामान्य प्रवाह को खारिज, रद्द या संशोधित किया गया है।3 बाइबल के शब्द "आश्चर्यकर्म" का अर्थ इसके लातिनी मूल से कहीं बढ़कर है। 

इस बात पर ध्यान दें कि बाइबल में इस शब्द का उपयोग केवल परमेश्वर की मनुष्य के कार्यों में शामिल होने के संदर्भ में ही नहीं किया गया है। यह उस बात को भी संदर्भित करता है जिसे सी.एस. लुईस कहते हैं, "एक दिव्य शक्ति द्वारा प्रकृति के साथ एक ईश्वरीय बिचवाई।"4 प्रतिदिन परमेश्वर हमारे साथ असंख्य कार्य करता है, किंतु यह आवश्यक नहीं है कि उन्हें करने के लिए वह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करें। किंतु यदि आपको एक दिन जानलेवा कैंसर रहा हो और दूसरे दिन वह ठीक हो जाए, तो ऐसा होना पूरी तरह से प्रकृति के नियमों के विपरीत होगा। एक आश्चर्यकर्म प्रकृति के स्पष्टीकरण की अवहेलना करता है क्योंकि यह प्रकृति के नियम की अवहेलना करता है।

यीशु के द्वारा अपनी ३ वर्षों की सेवकाई के दौरान किए गए आश्चर्यकर्मों में से ३५ बाइबल में दर्ज़ हैं। पानी पर चलने से लेकर मृतकों के जिलाने तक अनेक आश्चर्यकर्म हैं जो यीशु मसीह ने किए हैं। इन ३५ आश्चर्यकर्मों की पूरी सूची देखने के लिए इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में 'यीशु के आश्चर्यकर्म' खंड में जाएँ। परंतु ध्यान रखिए ये केवल वही आश्चर्यकर्म हैं जो दर्ज़ किए गए हैं। बाइबल यह भी कहती हैं कि और भी बहुत से कार्य हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं!  (यूहन्ना  21:25).

बाइबल में दर्ज़ आश्चर्यकर्मों का एक प्राथमिक उद्देश्य (यदि एकमात्र  प्राथमिक उद्देश्य नहीं है) उन संकेतों के रूप में कार्य करना था जो परमेश्वर की उपस्थिति और प्रकाशन की पुष्टि करते थे। और यह बात पुराने नियम में परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों के साथ-साथ यीशु मसीह के आश्चर्यकर्मों के लिए भी सत्य है। निर्गमन 7–11के आश्चर्यकर्म इस बात की पुष्टि करते हैं कि मूसा परमेश्वर के लिए बात कर रहा था। नए नियम में यीशु ने कहा कि उसके आश्चर्यकर्म इस बात को साबित करते हैं कि वह कौन है और यह कि पिता परमेश्वर ने उसे भेजा है  (यूहन्ना  5:36)| यीशु ने आश्चर्यकर्म किए ताकि लोग विश्वास कर सकें कि वह वही था जो उसने कहा था कि वह था। जब आप यीशु के आश्चर्यकर्मों पर विचार करते हैं, क्या तब आप विश्वास करते हैं?

पूछें और मनन करें

  • क्या आप आश्चर्यकर्म की बाइबल पर आधारित परिभाषा से सहमत हैं जैसा कि ऊपर बताया गया है? क्यों या क्यों नहीं?
  • यह जानकर कि यीशु प्रभावशाली शिक्षाओं और आश्चर्यकर्मों के साथ आया, उसे को देखने के आपके दृष्टिकोण में कुछ बदलाव आया है?  कृपया बताएँ आपने "हाँ" या "ना" में उत्तर क्यों दिया?

निर्णय ले और करें

यीशु ने आश्चर्यकर्म किए ताकि लोग उस पर विश्वास कर सकें। किंतु कई परिस्थितियों में यीशु ने आश्चर्यकर्म नहीं किए क्योंकि वह जानता था कि लोग उस पर विश्वास नहीं करेंगे। वह जानता था कि आश्चर्यकर्म देखने के बावजूद भी उनके हृदय उसे ग्रहण नहीं करेंगे। "और उसने वहाँ उनके अविश्‍वास के कारण बहुत से सामर्थ्य के कार्य नहीं किए" (मत्ती  13:58).

कभी-कभी लोग यह तर्क देते हैं कि यदि परमेश्वर उनके जीवन में कुछ करें तब ही वे उस पर विश्वास करेंगे। लेकिन परमेश्वर तो पहले ही कुछ कर चुका है। उसे अपने पुत्र को भेजा, और  वह आश्चर्यकर्म करता हुआ आया ताकि हम उस पर विश्वास कर सकें। मरकुस 9:23, में, यीशु ने कहा, "... विश्‍वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है।" हो सकता है हम चाहें कि परमेश्वर स्वयं को साबित करें, परन्तु इन वचनों के अनुसार पहले विश्वास करने वाले हृदय को अपना कार्य करना है।

 

इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में सूचीबद्ध किए गए यीशु के आश्चर्यकर्मों को पढ़ने के लिए कुछ समय निकालें। जब आप उन्हें पढ़ें तो परमेश्वर से विनती करें कि वह अपने बारे में आपको और अधिक सिखाएँ। 

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Footnotes

1Ken Palmer, Parables of Jesus Christ. (© Life of Christ, Ken Palmer, 1998–2006). (http://www.lifeofchrist.com/teachings/parables/). “A parable is an earthly story with a spiritual truth.”
2Miracle [LAT. miraculum, from mirari, to wonder]. (© Net Industries, Online Encyclopedia, 2006; originally appearing in Volume V18, Page 572 of the 1911 Encyclopedia Britannica). (http://encyclopedia.jrank.org/MIC_MOL/MIRACLE_Lat_miraculum_from_mira.html). Retrieved November 1, 2006.
3Miracles of Jesus – Man on a Mission. (© AllAboutJesusChrist.org, 2002 – 2006). (http://www.allaboutjesuschrist.org/miracles-of-jesus.htm). Retrieved November 1, 2006.
4John–Erik Stig Hansen, Do Miracles Occur? (©John Visser, Into the Wardrobe: A C. S. Lewis Website, 1994–2006). (http://cslewis.drzeus.net/papers/miracles.html). Retrieved November 1, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB