यीशु की परीक्षा

परखने और परीक्षा लेने के बीच का अंतर


प्रस्तावना

"तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो।"

— मत्ती ४:१ 

"जब शैतान सब परीक्षा कर चुका, तब कुछ समय के लिये उसके पास से चला गया।"

— लूका ४:१३ 

"तब यीशु वीराने में चला गया जहाँ शैतान उसकी परीक्षा लेगा। किन्तु यीशु शैतान का सामना करेगा और शैतान वहाँ से भाग जाएगा। वीराने में यह आमना-सामना एक परीक्षा थी। जिस प्रकार बहुमूल्य धातु की गुणवत्ता परखने के लिए उसका परीक्षण किया जाता है उसी प्रकार यह परीक्षा, इस बात को प्रमाणित करती थी कि यीशु वास्तव में परमेश्वर का पुत्र था  जो इस संसार में अपने पिता की इच्छा पूरा करने के लिए आया था। शैतान का सामना करने के बाद यीशु पवित्र आत्मा के सामर्थ्य में वीराने से लौट आया।"

— आशा, अध्याय ८

ध्यान से देखें और विचार करें 

यीशु के बपतिस्मे के बाद, वह परमेश्वर की आत्मा के द्वारा वीरानेमें ले जाया गया ताकि उसकी परीक्षा हो।  इस परीक्षा का वर्णन, में किया गया है मत्ती  4:1-11, मरकुस 1:12-13, और लूका  4:1-2| ध्यान दें कि  मत्ती  4:1 कहता है कि यीशु वीरानेमें ले जाया गया ताकि उसकी परीक्षा हो, पर यह नहीं कहता कि आत्मा ने उसकी परीक्षा ली। यह एक महत्वपूर्ण अंतर है क्योंकि बाइबल याकूब  याकूब 1:13 में भी कहती है कि "जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे कि मेरी परीक्षा परमेश्‍वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।" (यहाँ 'परीक्षा' शब्द का प्रयोग 'परखने' के भाव में किया गया है)। वह शैतान है जो परखता है  मत्ती 4:3 और 1 थिस्सलुनीकियों 3:5) में परखने वाला कहा गया है)। 

याकूब  1:13 को आधार बनाते हुए इस बात पर ध्यान दें के शैतान के लिए यीशु की परीक्षा लेना व्यर्थ था, क्योंकि "परमेश्वर की परीक्षा नहीं हो सकती है।" अंत में, यीशु की परीक्षा ने परमेश्वर के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का ही कार्य किया। यह सब उसकी योजना का हिस्सा था। यह और भी स्पष्ट हो जाएगा जब हम शब्द "परख" पर विचार करेंगे।

"परख" शब्द का अंग्रेजी शब्द 'टैम्प्ट' एक यूनानी शब्द "पेइराज़ो" से आया है, जो वास्तव में एक कानूनी शब्द है जिसका अर्थ है "साबित करना।"1 इस मूल परिभाषा के प्रकाश में, हम कह सकते हैं कि शैतान यह साबित करने के लिए यीशु को परख रहा था कि वह किसी भी जीवित रहे अन्य मनुष्य से भिन्न नहीं था; कि वह आदम की तरह ही था और कि वह दबाव में आकर टूट जाएगा। अंततः, जिस तरह एक अभियोगपक्ष का वकील अभियुक्त की गवाही को अयोग्य साबित करना चाहता है, उसी तरह शैतान यीशु को उस छुड़ानेवाले, के रूप में अयोग्य साबित करना चाहता था, जो मानवजाति को शैतान, पाप और मृत्यु से छुटकारा दिलाएगा।

यह बहुत दिलचस्प बात है कि इसी यूनानी शब्द "पेइराज़ो" का अनुवाद अंग्रेजी बाइबिल में "टेस्ट" और हिंदी बाइबल में "परीक्षा"2 के रूप में भी किया गया है।  In इब्रानियों11:17 में हम पढ़ते हैं कि "जब परमेश्‍वर ने अब्राहम की परीक्षा ली, तब विश्‍वास के कारण अब्राहम ने इसहाक को अर्पित किया।" क्योंकि हम अपने अध्ययन में इस कहानी पर पहले भी विचार कर चुके हैं और हम जानते हैं कि अब्राहम ने परीक्षा उत्तीर्ण की थी। परमेश्वर पहले से जानता था कि वह उत्तीर्ण होगा। यह परीक्षा यह निर्धारित करने के लिए नहीं थी कि अब्राहम उत्तीर्ण होगा या नहीं। यह परीक्षा इस बात को साबित करने के लिए थी कि अब्राहम का आधार क्या था? परीक्षा ही वह आधार थी जिस पर अब्राहम ने परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास को साबित किया था। जैसे कि उसकी अध्याय में हमने पहले एक वचन (इब्रानियों 11:2), से सीखा था कि "विश्‍वास के कारण हमारे पूर्वज परमेश्‍वर के कृपापात्र समझे गए।"

सरल शब्दों में कहें तो, शैतान हमें यह साबित करने के लिए "परखता" है कि हम वह नहीं हैं जो परमेश्वर कहता है कि हम हैं, और परमेश्वर हमें यह साबित करने के लिए हमारी "परीक्षा" लेता है कि हम वही हैं जो वह कहता है कि हम हैं। "परीक्षा" और "प्रलोभन" के बीच मुख्य अंतर उस जन का है जो इसे ले रहा है।

पूछें और मनन करें

  • आज का पाठ एक ऐसी अवधारणा पर बात करता है जो आपके लिए नई हो सकती है। क्या आप सहमत हैं या असहमत हैं? क्यों या क्यों नहीं?
  • सामान्य तौर पर, आप परीक्षाओं को कैसे देखते हैं? जब आप अपने जीवन में किसी परीक्षा का सामना करते हैं, तो क्या आप इसे चिंता या डर की भावना से देखते हैं कि कहीं आप असफल न हो जाएँ? या क्या आप इसे यह साबित करने के अवसर के रूप में देखते हैं कि आप कौन हैं और क्या हैं? समझाएँ।

निर्णय लें और करें

स्नातकोत्तर शिक्षा के क्षेत्र में, प्रवेश पाने के लिए विभिन्न पद्धतियाँ हैं। एक पद्धति यह है कि प्रवेश पाने को व्यापक रूप से साध्य (आसान) बनाया जाए किन्तु इसके साथ-साथ एक ऐसा अत्यंत कठिन प्रोग्राम (कोर्स) प्रस्तुत किया जाए जो उन छात्रों को छाँटकर निकाल दे, जो अच्छे नंबर लेने में सक्षम नहीं हैं। दूसरी ओर, ऐसे प्रोग्राम भी होते हैं जिनमें प्रवेश पाना तो अत्यंत कठिन होता है, मगर एक बार जब कोई उम्मीदवार प्रवेश पा लेता है, तो पूरा प्रोग्राम यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया जाता है कि वह उम्मीदवार सफलतापूर्वक उस प्रोग्राम को पूरा कर पाए।

जबकि ऊपर बताए गए दूसरे प्रकार के स्नातकोत्तर प्रोग्राम में प्रवेश पाने के लिए आवश्यक योग्यता पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है, परमेश्वर के साथ संबंध के लिए योग्यता पाना उससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए पूर्णता की आवश्यकता होती है, जो निश्चित ही मानवीय रूप से असंभव है! यही कारण है कि यीशु हमारे लिए वह करने आया जो हम अपने लिए कभी नहीं कर सकते थे। हालाँकि, आप जब एक बार आपके लिए परमेश्वर के प्रावधान पर भरोसा कर लेते हैं और उसके साथ एक अंतरंग, अनंत संबंध में प्रवेश पा लेते हैं, तो परमेश्वर आपको वैसा व्यक्ति बनाने में, जैसा कि वह चाहता है कि आप बनें, सहायता करने के लिए सबकुछ करेगा ताकि आप वैसे बन सकें। यह सच्चाई पद  फिलिप्पियों  1:6,  द्वारा समर्थित होती है, "मुझे इस बात का भरोसा है कि जिसने तुम में अच्छा काम आरंभ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा।"

यदि आपको यह विश्वास नहीं है कि यह सच है, तो विचार करें कि निम्नलिखित दो बातों में से कोई एक आपके जीवन में कार्य तो नहीं कर रही हैं: १) शायद आपने कभी-भी परमेश्वर के प्रतिज्ञा किए हुए छुड़ानेवाले पर विश्वास नहीं किया है, या २) हो सकता है, आपने विश्वास तो किया हो किंतु आप अभी तक यह नहीं समझ पाए हों कि परमेश्वर के साथ आपका संबंध कितना सुरक्षित है!

यदि आपको लगता है कि ऊपर बताया गया पहला विकल्प आपका वर्णन करता है तो इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में  'परमेश्वर को जानना' खंड में जाएँ और फिर से पढ़ें कि वह क्या है जो परमेश्वर ने आप की ओर से पहले से ही कर दिया है। यदि दूसरा विकल्प आपका वर्णन करता है तो प्रार्थनापूर्वक निम्नलिखित पदों को पढ़ें और उन पर मनन करें और परमेश्वर से विनती करें कि वह आपको दिखाए कि आपका संबंध कितना सुरक्षित है यूहन्ना 6:47, यूहन्ना 6:40, यूहन्ना 10:28-29, रोमियों  8:1, रोमियों  8:29, रोमियों  8:39, 1 कुरिन्थियों 1:8, 1 यूहन्ना 3:14.

Footnotes

1Does God Tempt Us to Sin? (© Got Questions Ministries, 2002–2006). (http://www.gotquestions.org/God–tempt–us–to–sin.html). Retrieved October 27, 2006.
2Ibid.

Scripture quotations taken from the NASB