अटूट आशा का स्रोत

उसकी कहानी के माध्यम से उसे जानना।


प्रस्तावना

"अदनकीवाटिकामें, परमेश्वरनेएकछुड़ानेवालाभेजनेकीप्रतिज्ञाकीथी।इब्रानीभविष्यवक्ताओंकेद्वारा, परमेश्वरनेइसछुड़ानेवालेकेविषयमेंसैकड़ोंप्रतिज्ञाएँदी, जोएकदिनशैतान, पापऔरमृत्युपरहमेशाकेलिएजयपाएगा।मंदिरसेदिनप्रतिदिन, वर्षप्रतिवर्षऔरपीढ़ीदरपीढ़ीउठनेवालेबलिदानकाधुआँइब्रीलोगोंकोनिरंतरयाददिलाताथाकिमानवजातिकोएकछुड़ानेवालेकीआवश्यकताहै।परंतुवहकबआएगा? वहकैसेआएगा? औरअबतकतोशायदकुछलोगोंनेयहभीसोचाहोकिक्यावहवास्तवमेंआएगा!

– "आशा" अध्याय ७

ध्यान से देखें और विचार करें

आज का पाठ "आशा" की कहानी का मध्य बिंदु है। अब तक हमने बाइबल की कई सच्चाइयों और घटनाओं पर विचार किया है। जैसा कि परमेश्वर चाहता था, इसने जो आने वाला है, उसके लिए एक आधार तैयार कर दिया है। पीछे मुड़कर देखें तो हमने निम्नलिखित बातों पर विचार कर लिया है:

  • क्यों बाइबल पर मनुष्य के लिए परमेश्वर के प्रकाशन के रूप में भरोसा किया जा सकता है (पाठ ३ और
  • बाइबल परमेश्वर के बारे में क्या कहती है - वह कौन है और वह कैसा है (पाठ ६
  • बाइबल मनुष्य के बारे में क्या कहती है - जिसे परमेश्वर के स्वरूप में सृजा गया किन्तु जो पाप के कारण परमेश्वर से अलग हो गया (पाठ ९ और १०
  • मनुष्य के लिए परमेश्वर का उद्देश्य - परमेश्वर से प्रेम करना और परमेश्वर से प्रेम पाना (पाठ १३
  • पाप की प्रकृति और मनुष्य पर उसका प्रभाव और परमेश्वर के साथ उसका संबंध (पाठ १८ और १९
  • बाइबल शैतान के बारे में और उस युद्ध के बारे में जो वह परमेश्वर और मनुष्य के विरुद्ध करता है, क्या कहती है? (पाठ १४
  • परमेश्वर ने एक छुड़ानेवाले को भेजने के प्रतिज्ञा दी, जो शैतान, पाप और मृत्यु पर सदा सर्वदा के लिए विजय प्राप्त करेगा (पाठ २०
  • संसार में जातियों का आरंभ कैसे हुआ (पाठ २५
  • किस प्रकार परमेश्वर ने एक व्यक्ति, अब्राहम, को बुलाहट दी, जिसके द्वारा उसने समस्त जातियों को आशीष देने प्रतिज्ञा दी (पाठ २६
  • परमेश्वर की प्रतिज्ञा को अब्राहम के वंशजों में पीढ़ी दर पीढ़ी किस प्रकार जीवित रखा गया (पाठ ३१
  • परमेश्वर ने किस प्रकार अब्राहम के वंशजों को इब्री लोगों के रूप में गठित किया, जिनसे वह उस छुड़ानेवाले को भेजेगा और समस्त जातियों को आशीषित करने की अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण करेगा (पाठ ३२

ये सभी घटनाएँ और सत्य बाइबल की पहली पाँच पुस्तकों में दर्ज़ हैं। इन पाँच पुस्तकों (इब्रानी लोग इसे ‘तौरात’ के नाम से बुलाते हैं) को हमारे वर्तमान पाठ में उल्लिखित समय-अवधि (लगभग ४०० ईसा पूर्व से १  ईस्वी तक) से पहले ही सावधानीपूर्वक संकलित और श्रमसाध्य रूप से संरक्षित कर दिया गया था। बाइबल की प्रतिलिपियों की शुद्धता की हिफाज़त करने के इब्रानी तरीकों की समीक्षा करने के लिए पाठ ३ देखें।

पूरे तौरात में एक केंद्रीय विषय के बारे में बार-बार बताया गया है, जो परमेश्वर के उस प्रतिज्ञा किए हुए छुड़ानेवाले के विशेष कार्य और सेवकाई के संदर्भ में है, जिसे इब्रानी लोग मसीह कहते हैं। यह केंद्रीय विषय बाइबल की सैकड़ों भविष्यवाणियों और कई कहानियों द्वारा पूर्वसूचित किया गया है। इनमें से कुछ पर हमने "आशा" के अपने अध्ययन में विचार किया है:

  • पशु की खाल जिसे परमेश्वर ने आदम और हव्वा के लिए एक आवरण के रूप में प्रदान किया था (पाठ २०
  • जहाज जिसमें रहकर नूह संसार पर पड़े न्याय से सुरक्षित बच गया (पाठ २३
  • मेढ़ा जिसे परमेश्वर ने अब्राहम को उसके पुत्र के बलिदान के विकल्प के रूप में प्रदान किया था (पाठ ३०
  • फसह के मेम्ने का लहू जिसे इब्री परिवारों के घरों के द्वार पर लगाया गया था ताकि मृत्यु उन पर न आए। (पाठ ३४
  • वे निर्देश जो परमेश्वर ने इब्रानी लोगों को पाप का प्रायश्चित करने (ढाँपने) के लिए बलिदान भेंट चढ़ाने के विषय में दिए थे (पाठ ३७

इनमें से प्रत्येक कहानी प्रभावपूर्ण चित्रण करती है कि किस प्रकार एक दिन परमेश्वर मनुष्य के लिए वह कार्य करेगा जो मनुष्य स्वयं अपने लिए नहीं कर सकता है: वह पापों से छुटकारा दिलाएगा और परमेश्वर के साथ सदा सर्वदा के लिए एक सही संबंध में चलने के लिए मार्ग प्रदान करेगा। ऐसा सोचा जा सकता है कि जब इब्रानी लोगों के पास पहले से ही इन बातों का प्रकाशन था तो वे लोग अवश्य ही बड़ी कर्मठता के साथ प्रतिज्ञा किए हुए छुड़ानेवाले की प्रतीक्षा करते होंगे। परंतु ऐसा नहीं था।

इतिहासकार हमें ब इताते हैं किस पाठ में उल्लेखित समय-अवधि के दौरान, नियमानुसार धर्म तो अपने चरम पर था परंतु आत्मिकता  न्यूनतम स्तर पर थी।1 कुछ लोग तो वास्तव में पवित्र शास्त्रों में वर्णित प्रतिज्ञा किए हुए उस एकमात्र जन की प्रतीक्षा कर रहे थे परंतु अधिकांश लोग केवल एक राजनैतिक छुड़ानेवाले की प्रतीक्षा में थे जो उन्हें विदेशी शासकों से स्वतंत्र कराएगा और उनके जीवन को बेहतर बनाएगा। उन लोगों का ध्यान पवित्र शास्त्रों में भविष्यवाणी किए गए उस छुड़ानेवाले की आशापूर्ण प्रत्याशा से कैसे भटक सकता था?

अधिकांश इतिहासकार और बाइबल के अध्ययनकर्ता इस भटकाव का कारण इब्रानी धार्मिक अगुवों के प्रभाव को देते हैं जिन्होंने परमेश्वर द्वारा दी गई "व्यवस्था" में अन्य कानून जोड़ दिए। में, व्यवस्थाविवरण 12:32, मे परमेश्वर ने कहा था, "जितनी बातों की मैं तुम को आज्ञा देता हूँ उनको चौकस होकर माना करना; और न तो कुछ उनमें बढ़ाना और न उनमें से कुछ घटाना।" इस बात से स्पष्ट होता है कि कैसे समय के साथ, इस प्रकार के प्रभावों ने इब्री लोगों का ध्यान भटका दिया और उन्होंने अपनी परिकल्पना (विज़न) खो दी। हम सभी को उनके उदाहरण से एक सबक सीखना चाहिए।

पूछें और  मनन करें

  • हमारे अध्ययन के पहले भाग में आपने जो कुछ भी सीखा है, उस पर एक बार फिर दृष्टि डालें, स्वयं से पूछें कि इसने परमेश्वर के प्रति आपके दृष्टिकोण और उसके साथ आपके संबंधों को किस प्रकार प्रभावित किया है।
  • जैसा कि हमने अध्याय ५, आजकल की "उत्तर-आधुनिक" 2 दुनिया उस महान कहानी के विचार को नकार देती है जो इस संसार और इसमें हमारे उद्देश्य के बारे में विस्तार से बताती है। यह उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण सापेक्षवाद 3 की ओर ले जाता है; यह विचार कहता है कि हम सभी को इस संसार के बारे में और इसमें हमारी भूमिका के बारे में अपनी-अपनी कहानियाँ तैयार करनी है, और यह भी कि हर कहानी समान रूप से मान्य और सत्य है। आप उस उत्तर-आधुनिकतावादी से क्या कहेंगे जो कहता है कि ऐसी कोई भव्य कहानी ही नहीं है जो उस संसार की व्याख्या करती हो जिसमें हम रहते हैं और यह भी बताती हो कि संसार में हमारा उद्देश्य क्या है?

निर्णय लें और करें

इतिहास की इस समय-अवधि के इब्री लोगों से हमें जो सबक सीखना चाहिए वह बहुत ही सरल और स्पष्ट है। परमेश्वर के वचन को अनदेखा न करें, और उसमें न तो कुछ जोड़ें और न ही कुछ घटाएँ! पद रोमियों 15:4 कहता है, "जितनी बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन द्वारा आशा रखें।" यदि आप एक ऐसी आशा रखना चाहते हैं जो सापेक्षवाद की इस दुनिया में भी अटूट रहे, तो परमेश्वर के वचन के अध्ययनकर्ता बनें। उसके वचन को अपने चारों ओर के संसार और उसमें आपके उद्देश्य के बारे में आपके दृष्टिकोण को आकार देने दें।

Footnotes

1Ernest R. Martin PhD., The Intertestamental Period. (This article was written in 1986; Transcribed and Edited by David Sielaff, June 2002; © Associates for Scriptural Knowledge, 1976–2006). (http://askelm.com/doctrine/d020601.htm). Retrieved October 19, 2006.
2Postmodernism [A Definition]. (Public Broadcasting Service, 1995–2206). (http://www.pbs.org/faithandreason/gengloss/postm-body.html). Retrieved October 19, 2006.
3Relativism [Definition, etc.]. (Answers Corporation, 2006). (http://www.answers.com/topic/relativism). Retrieved October 19, 2006. For insights into how relativism can be refuted: Matthew J. Slick, Relativism. (Christian Apologetics and Research Ministry, 2003). (http://www.carm.org/cut/relativism.htm). Retrieved October 27, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB