परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर से प्रेम पाने के लिए सृजा जाना

परमेश्वर के स्वरूप की आपके द्वारा कल्पित तस्वीर कहाँ से आई?


प्रस्तावना

“क्योंकि मनुष्य को सृजा गया था परमेश्वर से प्रेम करने के लिए ,और परमेश्वर के द्वारा प्रेम पाने के लिए।“ 

– “आशा” अध्याय २ 

ध्यान से देखें और विचार करें

हम किसी व्यक्ति को क्या प्रतिक्रिया देते हैं निश्चित रूप से इस बात से प्रभावित होता है कि हम उसे किस नज़रिये से देखते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अपने सह-कार्यकर्ता से सुनते हैं कि आपका निरीक्षक आप से नाराज़ था, तो आपको क्या लगता है, कि उसे अचानक अपने कार्यालय के दरवाज़े पर खड़ा देख कर आप कैसा महसूस करेंगे?

या, मान लीजिए कि आप सड़क पर गाड़ी चला रहे हों और अपना मनपसंद संगीत सुन रहे हों, और तभी आपने देखा कि एक पुलिस की गाड़ी को लाल बत्ती चमकाते हुए पीछे से आपकी ओर आ रही है, तो क्या आप यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं आप कानून तो नहीं तोड़ रहे हैं तुरंत अपने स्पीडोमीटर को देखेंगे? या फिर हो सकता है आपके दिमाग में पहला विचार यह आए कि कहीं आपने पुलिस द्वारा रोके जाने के इशारे को अनदेखा तो नहीं कर दिया? यदि आप भी बाकी सब लोगों की तरह ही हैं, तो हाँ, आप भी ऐसा ही करेंगे।

उसी प्रकार, परमेश्वर की ओर आपका नज़रिया, उसके प्रति आपकी तत्काल प्रतिक्रिया निर्धारित करती है। “आशा” वीडियो से लिए गए उपयुक्त कथन को हमने पिछले  पाठ में भी देखा था, लेकिन उस समय इस पर मनन नहीं किया था। लेकिन क्योंकि यह साधारण-सा कथन बहुत महत्वपूर्ण है,आइए इसे एक बार फिर देखते हैं और गहराई से समझते हैं कि यह हमारे लिए क्या मायने रखता है। यदि यह कथन सच है, तो फिर यह उन सब सच्चाइयों के लिए एक आधारशिला बन जाएगा जिन पर हम “आशा”  वीडियो के माध्यम से परमेश्वर की कहानी के अपने अध्ययन में आगे विचार करेंगे। यदि यह सच नहीं है, तो शायद ही आपको इस प्रयास को अभी छोड़ देने के लिए दोषी ठहराया जा सके।

“आशा”  वीडियो से उद्धृत इस अंश का प्रमाण बाइबल के चंद पदों से प्रभावी रूप से नहीं दिया जा सकता है। इसीलिए “आशा”  वीडियो बनाया गया था, और इसीलिए यह अध्ययन मार्गदर्शिका लिखी गई थी। जब कोई व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर की संपूर्ण कहानी पर विचार करता है, जैसे बाइबल में हमारे लिए दर्ज़ की गई है, केवल तभी उसके लिए १ यूहन्ना ४:८ जैसे पद की सच्चाई को समझना शुरू करना संभव है, जो कहता है, "परमेश्वर प्रेम है।"

एक पल के लिए उस पद पर विचार करें। वह यह नहीं कहता कि परमेश्वर प्रेम करता है बल्कि यह कहता है कि परमेश्वर प्रेम है। परमेश्वर प्रेम करता है क्योंकि वह प्रेम है। परमेश्वर ऐसा कुछ भी नहीं करता जिसमें उसका प्रेम शामिल न हो क्योंकि परमेश्वर ही प्रेम है। 

निःसन्देह, जबकि परमेश्वर की कहानी का गहन अध्ययन किसी भी व्यक्ति को परमेश्वर के प्रेम की वैचारिक समझ में बढ़ाने में सहायक हो सकता है, ऐसा केवल जीवन के उतार-चढ़ाव में परमेश्वर के प्रेम को अनुभव करने से संभव होता है कि परमेश्वर का प्रेम हमारे लिए घनिष्ठ रूप से वास्तविक बन जाता है। हमें से हर एक को इस सच्चाई को अपनी आत्मा में इस तरह से नक्श करने की आवश्यकता है कि वह परमेश्वर के बारे में जो कोई भी विकृत तस्वीर हमारे भीतर बसी हो, उसे मिटा दे और उसे एक सही और सच्ची तस्वीर से बदल दे। जब तक हम परमेश्वर को सही मायने में नहीं जानते, तब तक हम उसे सही प्रतिक्रिया नहीं दे पाएँगे।

पूछें और मनन करें

  • आज आप परमेश्वर को किस दृष्टि या नज़रिए से देखते हैं? क्या आप उसे एक नाराज़ निरीक्षक या पुलिस अधिकारी के रूप में देखते हैं, जैसा कि हमने पाठ के आरंभ में माना था? क्या आप उसे एक प्रेम करने वाले पिता या मित्र के रूप में देखते हैं? आप अभी इसी क्षण परमेश्वर को किस नज़रिए से देखते हैं? उत्तर देने से पहले इसके बारे में सोचें।
  • परमेश्वर के स्वरूप की यह तस्वीर कहाँ से आई? यह किस तरह प्रभावित करेगी कि आज आप परमेश्वर को किस प्रकार की प्रतिक्रिया देते हैं?
  • क्या आप ऐसा कहेंगे कि इस क्षण आप अपने जीवन में परमेश्वर के प्रेम को अनुभव कर रहे हैं? क्यों या क्यों नहीं? आपके अतीत के कौन से अनुभव आपके वर्तमान अनुभव को प्रभावित करते हैं?

निर्णय ले और करें

ऊपर दिए गए प्रश्नों पर कुछ अधिक समय तक विचार करने की आवश्यकता है। आपको शायद इन प्रश्नों पर विचार करने और अपनी प्रतिक्रिया तैयार करने के लिए पर्याप्त समय निकालने की आवश्यकता है। हो सकता है कि आप अपने विचारों को डायरी में लिखना चाहते हों।

परमेश्वर से कहें कि वह आपको दर्शाए कि कहीं आपके पास उसकी जो तस्वीर है वह विकृत तो नहीं है! परमेश्वर से कहें कि वह आपके लिए एक ऐसी तस्वीर तैयार करें जो सच्ची है। याद रखें, इस तरह की उत्कृष्ट तस्वीर को पूर्ण करने में जीवनभर का समय भी लग सकता है - और यह आपके समय का सबसे अच्छा उपयोग होगा। 

Scripture quotations taken from the NASB