परमेश्वर में बढ़ाना

परमेश्वर के साथ अपने संबंध में बढ़ने की मूल बातें


परमेश्वर के साथ अपने संबंध में बढ़ने की मूल बातें 

परमेश्वर के साथ उसके पुत्र के माध्यम से एक संबंध में आना एक अद्भुत शुरुआत है - किंतु यह केवल एक शुरुआत है। हालांकि यह उस यात्रा का अंत है जिसे "विश्वास में आना" कहते है, फिर भी यह एक दूसरी यात्रा की शुरुआत है जिससे "परमेश्वर में बढ़ना" कहा जा सकता है। प्रेरित पौलुस ने इस बात का दावा किया कि यीशु मसीह को जानना उसके जीवन का महान लक्ष्य है। उसने कहा, "ताकि मैं उसको और उसके मृत्युञ्जय की सामर्थ्य को, और उसके साथ दु:खों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्‍त करूँ कि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुँचूँ" (फिलिप्पियों ३:१०-११)|

प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर में बढ़ने को एक ऐसे उत्तरदायित्व के रूप में देखा जो उसे तब तक जोश में भरता रहेगा जब तक मृत्यु उसे परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं ले जाती! 

तो हम अपने महान, उद्धार करता परमेश्वर को कैसे जान सकते हैं और उसमें कैसे बढ़ सकते हैं या उन्नति कर सकते हैं? इसके कई तरीके हैं, किंतु समय के साथ-साथ कुछ मूल  तरीके मुख्य रूप से उभर कर आते हैं। जब हम उसके वचन अर्थात बाइबल का अध्ययन करते हैं, प्रार्थना के द्वारा उससे बातचीत करते हैं , विश्वासियों के साथ अपना जीवन साझा करते हैं, और प्रतिदिन विश्वास और आज्ञाकारिता में उसका अनुसरण करते हैं, तो उसके बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता है। अब एक-एक कर इनमें से प्रत्येक की जाँच करेंगे|

1. परमेश्वर के वचन को पढ़ना

आप कभी भी बिना उचित पोषण के  एक बालक को एक स्वस्थ वयस्क के रूप में बढ़ने की अपेक्षा नहीं करेंगे। बच्चे बड़ा होने के लिए खाते हैं। उसी प्रकार, परमेश्वर का वचन आत्मिक भोजन है जो प्रत्येक  मसीही को बढ़ने के लिए पोषित करता है। प्रेरित पौलुस यीशु के अनुयायियों को कहता है कि नवजात शिशुओं के समान, "निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ, क्योंकि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है।"  (१ पतरस २:२-३)| जिस प्रकार भोजन ग्रहण करने के कई तरीके हैं - उसी प्रकार परमेश्वर के जीवनदायक वचन को ग्रहण करने के भी कई तरीके हैं। शुरू करने के लिए इन पर विचार करें: 

  • प्रतिदिन अपनी बाइबिल पढ़ें: प्रतिदिन बाइबल में से एक भाग पढ़ने के लिए कई योजनाएँ  हैं। यदि आप मसीही में नए अनुयायी हैं तो आप प्रतिदिन यूहन्ना की इंजील के कुछ पदों को पढ़कर अध्ययन की शुरुआत कर सकते हैं, आप जब तक पुस्तक समाप्त न हो जाए पढ़ते रहें। फिर दूसरी इंजील की तरफ बढ़ें (मत्ती, मरकुस या लूका), या पौलुस के "मिशनरी" पत्रों में से एक जैसे इफिसियों या फिलिप्पियों की ओर बढ़ें। आप एक 'डिवोशनल' बाइबल से भी पढ़ सकते हैं जिसमें प्रतिदिन के अध्ययन के लिए पवित्र शास्त्र में से कुछ चुने हुए पद होते हैं, और उन अनुच्छेदों के ऊपर विचार करने के लिए कुछ बातें भी लिखी होती हैं।
  • संपूर्णबाइबलकोपढ़ना।कुछबाइबलोंकोव्यवस्थिततरीकेसेपढ़नेकेलिएगाइडों  केसाथप्रकाशितकियाजाताहै।यदिआपकीबाइबलमेंऐसाकोईगाइडयामार्गदर्शकनहींहैतोआपइसेआसानीसेपासकतेहैं।कुछकोआपनिम्नलिखितवेबसाइटसेभीडाउनलोडकरसकतेहैंhttp://thegospelcoalition.org/blogs/justintaylor/2012/12/27/reading-the-bible-in-2013/.
  • परमेश्वरकेवचनकीखोजकरनाआपकेलिएप्रतिज्ञासेभराहुआहै।उसकेवचनोंकोयादकरेंऔरउनपरमननकरें।कुछबाइबलोंमेंउनकेसंदर्भखंडमेंपरमेश्वरकिकुछप्रतिज्ञाओंकीसूचीदीगईहोतीहै।कुछजानकारियाँ  मुफ्तउपलब्धहोतीहैं।परमेश्वरकीप्रतिज्ञाओंकेमुख्यशब्दकेद्वाराआप 'यहाँखोजें' (सर्च) मेंजाकरउनप्रतिज्ञाओंकीखोजकरसकतेहैं :   http://bible.org/article/selected-promises-god-each-book-bible.
  • समूह में बाइबल का अध्ययन करना। परमेश्वर के वचन को अन्य मसीही लोगों के साथ मिलकर पढ़ना अंतर्दृष्टि और समुदाय, दोनों में उन्नति करने का एक अद्भुत तरीका है। अपने क्षेत्र की बाइबिल पर विश्वास करने वाली कलीसिया कलीसिया के एक अगुवे की खोज करें और उनसे ऐसे सामूहिक अध्ययन के विषय में पूछें जिसमें आप भाग ले सकते हों।

 

 

 

हर अवसर पर, बाइबल अध्ययन केवल अकादमिक पर आधारित नहीं होना चाहिए, या केवल अध्ययन करने के उद्देश्य से अध्ययन नहीं करना चाहिए। आप केवल "बुद्धिमता सुसज्जित ज्ञान" हासिल करने के लिए बाइबल अध्ययन नहीं कर रहे हैं बल्कि आप उस परमेश्वर को अधिक गहराई से और पूर्णतया जाने के लिए अध्ययन कर रहे हैं, जिसके उद्धार की योजना में आप सम्मिलित किए गए हैं। अब आप उसकी कहानी का हिस्सा हैं।

२. परमेश्वर के साथ बातचीत 

प्रार्थना, परमेश्वर के साथ बातचीत करना है - और यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक-तरफ़ा बातचीत के समान प्रतीत हो सकती है किंतु ऐसा है नहीं। प्रार्थना में परमेश्वर से बात करना और बदले में उसकी आवाज़ सुनना शामिल होता है - जब वह अपने वचन के माध्यम से, अपने सेवकों के माध्यम से और पवित्र आत्मा की एक दबी हुई और धीमी-सी आवाज़ के माध्यम से हमसे बातचीत करता है। प्रार्थना के माध्यम से हम परमेश्वर को हमारे प्रति उसकी भलाई के लिए धन्यवाद देते हैं, अपने पापों का अंगीकार करते हैं, और वह जो है उसके लिए उसकी स्तुति करते हैं, और उससे निवेदन करते हैं। नियमित प्रार्थना के द्वारा हम परमेश्वर के साथ अपने संबंध में बढ़ते हैं और अपने विश्वास में परिपक्व होते हैं। बाइबल कहती हैं कि हमें हर विषय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और हमें "निरंतर" प्रार्थना करनी चाहिए। सचमुच कुछ भी ऐसा नहीं है जो परमेश्वर के साथ प्रार्थना में साझा नहीं किया जा सकता। वह हमारे जीवन का परमेश्वर है।

  • प्रतिदिन परमेश्वर के साथ कुछ समय बिताने की आदत डालें। सुनना सीखें, साथ ही कहना भी सीखें। कुछ लोग परमेश्वर के साथ बिताए गए इस समय को "शांत समय" भी कहते है - परन्तु हो सकता है यह उतना भी शांत न हो। आप ऊँचे स्वर में प्रार्थना कर सकते हैं, स्तुति के गीत गा सकते हैं, या पवित्रशास्त्र में से ऊँचे स्वर में प्रार्थनाएँ पढ़ सकते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर के साथ एक निर्धारित समय अलग से रखा जाए जिसमें फेरबदल न की जाए, चाहे फिर वे हर सुबह या शाम में एकाग्रता के कुछ क्षण ही क्यों न हो।
  • अपने पास एक प्रार्थना पत्रिका रखें। अपनी प्रार्थनाओं को दर्ज़ करने से आपको यह देखने में सहायता मिलती है कि परमेश्वर किस प्रकार से आपकी अगुवाई कर रहा है और साथ ही, न केवल उन निवेदनों को प्रदान करने के लिए जो आप प्रार्थना में उससे माँगते हैं बल्कि जिन बातों की आपको वास्तव में आवश्यकता है, उन्हें भी प्रदान करने के लिए परमेश्वर की विश्वासयोग्यता के लिए उसकी स्तुति करने में भी सहायता मिलती है। यकीन रखें, और आपकी जिन प्रार्थना-निवेदनों का उत्तर आपको मिल गया है, उन्हें दूसरों के साथ साझा करें। आपके प्रति परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का उपयोग किसी और के विश्वास को बनाने या बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है!
  • इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में दी गई 'आदर्श प्रार्थना' में यीशु प्रार्थना करने के विषय में क्या सिखाया है, उसका अध्ययन करें। जब यीशु मसीह के चेलों ने उससे कहा, " हे प्रभु, हमें प्रार्थना करना सिखा दे", उसके उत्तर में यीशु ने यह प्रार्थना सिखाई। बहुत से लोग इस प्रार्थना को बस एक रटे-रटाए तरीके से या एक नित्यकर्म के रूप में बोल देते हैं और शायद ही उसके शब्दों के अर्थ पर गहराई से विचार करते हों। इस प्रार्थना का अध्ययन करते हुए, इसके हर एक शब्द पर गहराई से विचार करें और पहचानें कि यह आपके प्रति परमेश्वर की निरंतर देखभाल और चिंता के बारे में क्या कह रहे हैं।
  • दिनभर परमेश्वर के साथ एक निरंतर वार्तालाप बनाए रखने के लिए अपने को साधने में लगे रहें। कुछ लोग इसे परमेश्वर की "उपस्थिति का अभ्यास" करना कहते हैं। आपको बस स्वयं को स्मरण दिलाते रहना है कि परमेश्वर दिनभर, प्रतिदिन आपके साथ बना रहता है - और आप जब चाहें, जिस विषय पर भी चाहें उससे बात कर सकते हैं।

३ . अन्य विश्वासियों के साथ संगति 

जब एक व्यक्ति यीशु मसीह के पास आता है तो वह उसकी देह, अर्थात कलीसिया का अंग बन जाता है। किसी भौतिक देह के समान ही, इस आत्मिक देह के प्रत्येक सदस्य का भी एक विशिष्ट उद्देश्य, एक विशेष पहचान होती है, और जैसे एक अंगुली हाथ से पृथक होकर अपना कार्य नहीं कर सकती है, उसी प्रकार एक अकेला मसीही एक स्थानीय कलीसिया के संबंध से पृथक होकर अपनी पहचान को कभी भी पूरी तरह से नहीं जान पाता है और न ही उसका अनुभव कर पाता है। मसीही उन्नति के लिए संगति अनिवार्य है, और हमें इसे छोड़ने के विरुद्ध चेतावनी भी दी गई है (इब्रानियों 10:24-25)। अन्य विश्वासियों के साथ समुदाय या संगति में हम परमेश्वर और स्वयं के बारे में ऐसी बातें सीखते हैं जो किसी अन्य रीति से नहीं सीखी जा सकती हैं।

  • जब आप अपने विश्वास की यात्रा का आरंभ करते हैं तो अपने नज़दीक एक कलीसिया ढूँढें जो आपको स्पष्ट रूप से सिखाए कि १) यीशु मसीह पर विश्वास रखना परमेश्वर और अनंतकाल के जीवन को पाने का एकमात्र मार्ग है, और २) बाइबल परमेश्वर का वचन है।
  • यह पता करें कि आप स्थानीय कलीसिया के माध्यम से कैसे देह अर्थात कलीसिया की सेवा कर सकते हैं ताकि परमेश्वर आपका उपयोग कर सके और आपको बढ़ा सके।
  • अपनी स्थानीय कलीसिया के प्रति अपनी वचनबद्धता में विश्वासयोग्य बने रहें। न केवल आपको एक कलीसिया की आवश्यकता है बल्कि कलीसिया को भी आप की आवश्यकता है!

४. अपने विश्वास को दूसरों के साथ साझा करें 

यदि एक वृक्ष जिसे फल देने के लिए रचा गया हो, फल देना बंद कर दे, तो उसकी फलहीनता इस बात का एक ठोस संकेत है कि वह वृक्ष स्वस्थ नहीं है। जिस प्रकार एक स्वस्थ वृक्ष फल उत्पन्न करता है उसी प्रकार एक स्वस्थ मसीही यीशु के जीवनदायक सत्य को दूसरों के साथ साझा करने के द्वारा फल उत्पन्न करता है। यदि जो जीवन परमेश्वर ने आपको दिया है उसे आप अपने तक ही सीमित रखेंगे और उसके बारे में दूसरों को नहीं बताएँगे तो आपका जीवन ठहर जाएगा। जब आप, जो कुछ परमेश्वर ने आपको दिया है उसे दूसरों तक पहुँचाते हैं तो परमेश्वर आपको एक नए सिरे से भर देता है। अपने विश्वास को साझा करना एक मसीही जीवन के लिए अनिवार्य है - किसी अपराध बोध के कारण नहीं - परंतु आपके प्रति उसकी उद्धारदायक भलाई से उत्पन्न आनंद और उत्साह के कारण।

  • परमेश्वर से विनती करें कि वह उन लोगों की सूची बनाने में आपकी सहायता करें, जिनके साथ वह चाहता है कि आप अपना विश्वास साझा करें। प्रत्येक व्यक्ति के साथ साझा करने के सही समय के लिए अभी से प्रार्थना करना आरंभ कर दें।
  • प्रतिदिन साझा करने के अवसरों की तलाश करें। परमेश्वर से पूछें, "क्या आपने इस व्यक्ति को वह सुनने के लिए तैयार किया है जो मैं उसके साथ साझा करना चाहता हूँ?" जोख़िम उठाने के लिए तैयार रहें। परिणाम आपकी अपेक्षा से कहीं अधिक हर्षदायक हो सकते हैं।
  • इस अध्ययन मार्गदर्शिका के 'परमेश्वर को जानना' खंड को ठीक तरह से समझ लें ताकि आप आसानी से उस आशा के विषय में दूसरों को बता सकें जो वे लोग आप में देखते हैं (१ पतरस ३:१५).
  • अपने विश्वास की यात्रा को सरल वार्तालाप के माध्यम से दूसरों से साझा करने का अभ्यास करें। पता नहीं कब परमेश्वर आपको अपनी कहानी दूसरों के साथ साझा करने का अवसर प्रदान कर दे! 

५. परमेश्वर पर निर्भर होने के माध्यम से उस पर भरोसा करना और उसकी आज्ञा का पालन करना सीखें 

ऐसा कहा जाता है कि सब सच्चा ज्ञान आज्ञाकारिता का परिणाम होता है; बाकी सब मात्र जानकारी होती है। यदि आप वास्तव में परमेश्वर को जानना और अनुभव करना चाहते हैं, तो आपको उस पर भरोसा करना चाहिए और उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए - पवित्र आत्मा पर निर्भर रहते हुए जिसे आपने परमेश्वर से ग्रहण किया है। मसीहियों के लिए आज्ञाकारिता वैकल्पिक नहीं हैं। हालाँकि हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, फिर भी यह सोच कर कि क्योंकि हम पर परमेश्वर का अनुग्रह है और हम दंड से बच जाएँगे, हम जानबूझकर पाप करते नहीं रह सकते हैं। यह तो निश्चित है कि जब तक हम, जो कुछ भी उसने हमें पहले दे दिया है उसके प्रति पूर्ण रुप से विश्वासयोग्य न बन जाएँ, वह हमें और अधिक प्रकाशन और उसे समझने की बुद्धि नहीं प्रदान करेगा।

जब हम परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और उसकी आज्ञा का पालन करते हैं तब हम अधिक और अधिक उसके स्वरूप बनते जाते हैं। इसे "पवित्रीकरण" कहा जाता है, और यह प्रत्येक पुरुष और स्त्री के लिए उद्धार का इच्छित परिणाम है। परमेश्वर का लक्ष्य है कि उसके पुत्र और पुत्रियों में "मसीह का रूप  बन जाए" (गलातियों ४:१९) – और यह प्रक्रिया स्वचालित नहीं है, बल्कि उस बात का परिणाम है जिसे किसी लेखक ने "एक ही दिशा में एक लंबी आज्ञाकारिता" कहा है।

हम पवित्रीकरण की इस प्रक्रिया में कैसे सहभागी हो सकते हैं ?

  • परमेश्वर का वचन सीखना। बाइबल वह प्राथमिक रीति है जिसके माध्यम से मसीही लोग परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना सीखते हैं। हम इसे पढ़ते हैं ताकि इससे सीखें और साथ ही साथ इसके द्वारा आत्मिक रीति से परिवर्तित हो जाएँ - क्योंकि यह एक जीवित पुस्तक है जिसमें हमें परिवर्तित करने की सामर्थ्य है!  (२ तीमुथियुस ३:१६-१७)
  • परमेश्वर के साथ एकांत में समय बिताते हुए उससे अपने जीवन के उस क्षेत्र को उजागर करने के लिए विनती करें जिसमें आप उसके वचन का पालन नहीं कर पा रहे हैं। यदि आपके जीवन के कुछ ऐसे क्षेत्र है जिनमें आप संघर्ष कर रहे हैं किंतु बार-बार विफल हो रहे हैं, तो किसी परिपक्व, समझदार मसीही की सलाह लें जो आपके संघर्ष में आपके साथ चले और आपको जवाबदेह बनाए।
  • अब परमेश्वर की आत्मा के स्वर को सुनना और उससे बात करना सीखें। यह एक ऐसा अभ्यास है जो समय के साथ-साथ आसान होता जाता है, किंतु आपको उस एकमात्र, जिसे यीशु ने "सहायक" कहा था और जिसे उसने हमारे साथ-साथ चलने के लिए भेजा था, को जानना और उससे बातचीत करना आरंभ करना चाहिए।
  • परमेश्वर पर यह भरोसा करना कि जो कार्य उसमें आप में आरंभ किया है उसे वह अवश्य पूर्ण करेगा। उसी प्रकार जिस प्रकार आपने विश्वास के द्वारा अपने उद्धार के लिए मसीह पर भरोसा किया था, पवित्र आत्मा पर भी भरोसा करना सीखें ताकि पल-पल आप परमेश्वर की आज्ञा का पालन कर सकें। धर्मी जन मात्र विश्वास से नहीं बल्कि उस विश्वास से जीवित रहेगा जिसने उसे बचाया है (फिलिप्पियों १:६)