एक घातक विचारधारा

पहला प्रश्न यह नहीं है कि "क्या वह अच्छा है," बल्कि यह है कि "क्या वह परमेश्वर है?"


प्रस्तावना

"यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना? स्त्री ने सर्प से कहा, इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं। पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे। तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे, बल्कि परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।"

– उत्पत्ति ३: १-५ 

“और फिर ऐसा हुआ कि एक दिन जब हव्वा भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष के निकट टहल रही थी तब शैतान ने उससे बात की। उसे कोई भय न था, क्योंकि तब तक भय संसार में नहीं आया था। शैतान ने उससे उस वर्जित फल के बारे में पूछा। उसने परमेश्वर की चेतावनी और मनुष्य के प्रति उसकी मंशा पर सवाल उठाए। हव्वा ने उसकी बात सुनी और परमेश्वर पर संदेह करने लगी। उसने फल लिया और खाया। फिर उसने वह फल आदम को दिया और उसने खाया। और तुरंत ही उन्हें अपनी नग्नता का बोध हुआ और वे लज्जित हुए।"

– “आशा” अध्याय ३ 

ध्यान से देखें और विचार करें  

वर्तमान पाठ में ज्ञान के वृक्ष के निकट हव्वा के साथ शैतान की बातचीत के विषय में हमारा अध्ययन जारी है। आइए, हव्वा के लिए प्रयोग की जा रही शैतान की रणनीति पर विचार करते हैं, जैसा कि उपर्युक्त बाइबल के लेखांश में दर्ज़ है।

हव्वा ने शैतान को बताया कि परमेश्वर ने वर्जित वृक्ष के बारे में क्या कहा, "न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।" शैतान ने विषय में उत्तर दिया, “तुम निश्चय न मरोगे, बल्कि परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” 1

पहली नज़र में ऐसा लगता है कि शैतान बस परमेश्वर का विरोध कर रहा है, या फिर परमेश्वर द्वारा कही गई बात की पुनः व्याख्या करने की कोशिश कर रहा है। ऐसा लगता है कि वह यह कोशिश कर रहा है कि हव्वा के मन में यह प्रश्न उठे कि क्या उसने वास्तव में वही सुना जो उसे लगता है कि उसने सुना। संदेह और भ्रम को भड़काना निश्चित रूप से शैतान की प्राथमिक रणनीतियों में से एक है।

लेकिन यदि आप और गहराई से विचार करेंगे तो शैतान की रणनीतियों में और भी बहुत कुछ दिखाई देगा। उसके इस कथन में, "तुम निश्चय न मरोगे!" आप उसे हव्वा से लगभग कहते हुए सुन सकते हैं, “ओह, सोच कर देखो! परमेश्वर तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करेगा...करेगा क्या?" शैतान हव्वा को उसके लिए परमेश्वर के इरादों पर प्रश्न उठाने के लिए उकसा रहा है। इसके आगे वह कहता है,"परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।" ऐसा लगता है कि शैतान इशारा कर रहा है कि शायद परमेश्वर वास्तव में नहीं चाहता कि हव्वा वह सब बन सके जो वह बन सकती है, जो फिर उसे यह सोचने पर मजबूर करेगा कि, "क्या परमेश्वर वास्तव में वही चाहता है जो मेरे लिए सबसे अच्छा है?"

इस विचारधारा के मूल में एक बहुत ही घातक प्रश्न छिपा है: "क्या परमेश्वर वास्तव में अच्छा है?" हमेशा से ही लोगों ने इस एक प्रश्न पर ठोकर खाई है। जैसे ही हव्वा ने यह पूछना शुरू किया, बस उसी क्षण वह जाल में फँस गई। 'उसके लिए परमेश्वर है', इस पर संदेह करते हुए अब वह अपने स्वयं के हितों की परवाह करने लगेगी। 

पूछें और मनन करें

क्या आपके जीवन में कोई ऐसा क्षेत्र है जहाँ आप परमेश्वर पर भरोसा करने में झिझकते रहे हैं?

जब भी परमेश्वर आपसे उस पर भरोसा करने के लिए कहता है तो आप निश्चित हो सकते हैं कि ऐसा करने के लिए उसने अपने बारे में आपको वह सब कुछ प्रकट कर दिया है जिसे आपको जानने की आवश्यकता है। हो सकता है कि उसने वह सब नहीं बताया हो जो आप जानना चाहते हैं लेकिन उसने आप पर वह सब प्रकट किया है जो आपको जानना चाहिए

शैतान से मिलने से पहले, हव्वा ने ज्ञान के वृक्ष के बारे में जो भी परमेश्वर ने उसे बताया था, स्वीकार कर लिया था। और वह ऐसा करती भी क्यों नहीं? वह इस सरल किन्तु गहरे विश्वास पर चलती थी कि क्योंकि परमेश्वर परमेश्वर है इसलिए वह जो कुछ भी कहता है, उसे स्वीकार करना चाहिए। ध्यान दीजिए कि शैतान हव्वा को यह प्रश्न पूछने के लिए नहीं लुभाता है कि क्या परमेश्वर वास्तव में परमेश्वर है, किंतु यह कि क्या वह वास्तव में अच्छा है। जब हम भरोसा करने और आज्ञा-पालन के द्वारा परमेश्वर को परमेश्वर मानकर स्वीकार करेंगे और उससे बात करेंगे, तब ही हम उसकी अच्छाई को खोज पाएँगे। यदि हम तब तक प्रतीक्षा करते रहें जब तक आज्ञाकारिता के लिए विश्वास और भरोसा करने की आवश्यकता खत्म न हो जाए, तो हम कभी भी आज्ञा-पालन नहीं कर सकेंगे।

निर्णय लें और करें

बाइबल में दर्ज़ इस कहानी से हम अमल में लाने के लिए दो व्यवहारिक बातें सीख सकते हैं।

  • बुराई में न तो शामिल हों और न ही उसे कोई मौका दें।2 आप जीत नहीं पाएँगे। हव्वा आसानी से शैतान के साथ एक दिलचस्प बातचीत में आ गई और उसके जाल में फँस गई। शैतान हव्वा के लिए बहुत चालाक था, और वह हमारे लिए भी उतना ही चालाक है।
  • स्वयं से पूछें, "क्या मैं परमेश्वर की प्रतिज्ञा कर रहा हूँ कि इससे पहले कि मैं किसी विशेष क्षेत्र में उस पर भरोसा करूँ, वह मुझ पर और अधिकता से प्रकट करें कि वह कौन है?" यदि ऐसा है तो शायद आपको विश्वास का एक कदम उठाने की आवश्यकता है। "और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजने वालों को प्रतिफल देता है।"(इब्रानियों 11:6).

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Footnotes

1Genesis 3:1-4

2Matthew 9:4; 2 Timothy 2:22

Scripture quotations taken from the NASB