झूठा, पागल, या प्रभु - "तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?"

क्यों यीशु ने हमारे लिए कोई और विकल्प नहीं छोड़ा?


प्रस्तावना

"यीशु कैसरिया फिलिप्पी के प्रदेश में आया, और अपने चेलों से पूछने लगा, "लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?" उन्होंने कहा, “कुछ तो यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं, और कुछ एलिय्याह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्‍ताओं में से कोई एक कहते हैं।” उसने उनसे कहा, "परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?" शमौन पतरस ने उत्तर दिया, "तू जीवते परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है।" यीशु ने उसको उत्तर दिया, "हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है; क्योंकि मांस और लहू ने नहीं , परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है।"

– मत्ती १६:१३-१७

ध्यान से देखें  और विचार करें

उन दिनों में लोगों में यीशु कौन है इस बारे में अलग-अलग राय थी। हमारे इन दिनों में भी कुछ अधिक बदलाव नहीं आया है। यदि आप सड़क पर लोगों से पूछेंगे कि यीशु कौन है तो आपको संभवतः अलग-अलग उत्तर ही मिलेंगे। कुछ लोग हो सकता है कुछ वैसा कहें जैसा पतरस उपर्युक्त पद में कहता है, कि यीशु मसीह है, जीवित परमेश्वर का पुत्र। किंतु अन्य लोग हो सकता है उसे केवल एक महान शिक्षक या भविष्यवक्ता या कोई आश्चर्यकर्म करने वाले व्यक्ति के रूप में पहचानेंगे।

जो प्रश्न यीशु मसीह ने पतरस से पूछा, "तुम मुझे क्या कहते हो?" यह सब प्रश्नों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है, जिसका उत्तर एक व्यक्ति कभी दे। पिछले कई पाठों में यीशु की सेवकाई और उसके दावों पर विचार करने के बाद, अब समय आया है कि हम इस प्रश्न का सामना करें।

कुछ लोग किसी और प्रकार का तर्क भी दे सकते हैं, किंतु यीशु ने हमारे लिए कोई और विकल्प नहीं छोड़ा कि हम उसे केवल एक महान शिक्षक या भविष्यवक्ता या आश्चर्यकर्म करनेवाला व्यक्ति कहें। हमारे पास यह विकल्प न होने का कारण का सार एक तर्क में छिपा है जो पहले सी.एस. लुईस,1 ने दिया और बाद में जोश मैकडॉवेल| 2 द्वारा दिया गया। यह तर्क इस बात पर ज़ोर देता है कि इस प्रश्न "यीशु कौन था?" के केवल तीन संभावित उत्तर हैं।

यीशु ने परमेश्वर होने का दावा किया। कुछ लोग इस बात से इनकार करते हैं कि उसने वास्तव में यह दावा किया था, किंतु वास्तव में यही कारण था कि धार्मिक अगुवे उसे मरवाना डालना चाहते थे। यीशु तो अपने दावे के बारे में बिलकुल स्पष्ट था और स्पष्ट रूप से तीन संभावनाओं में से यह दावा केवल एक ही संभावना की ओर अगुवाई करता है; वे तीन संभावित उत्तर या संभावनाएँ निम्नलिखित हैं:

1.   यीशु मसीह दिल से विश्वास तो करता था कि वह परमेश्वर का पुत्र  था, किंतु वह स्वयं भ्रमित हो गया था, इतना अधिक भ्रमित कि वह इसके कारण प्राण देने के लिए भी तैयार था। यह संभावना यीशु को एक पागल व्यक्ति की श्रेणी में डाल देती है।

2. यीशु जानता था कि वह परमेश्वर का पुत्र नहीं था, परन्तु वह इसके बारे में झूठ भी बोलने को तैयार था। यह न केवल उसे झूठा ठहराएगा बल्कि उसे बहुत दुष्ट व्यक्ति भी बना देगा क्योंकि वह जानबूझकर लोगों को गुमराह कर रहा था, जिनमें से कई तो सताए जाएँगे और मार डाले जाएँगे क्योंकि उन्होंने उस पर विश्वास किया।

3. यीशु वही था जो होने का वह दावा किया करता था : जीवित परमेश्वर का पुत्र।

यीशु ने हमारे लिए कोई और विकल्प नहीं छोड़ा? हम उसे मात्र एक अच्छा व्यक्ति नहीं कह सकते हैं, क्योंकि एक अच्छा व्यक्ति यह कहकर लोगों को गुमराह नहीं करता है कि वह कुछ ऐसा था जो वह नहीं था। हम उसे केवल एक अच्छा शिक्षक नहीं कह सकते हैं, क्योंकि एक अच्छा शिक्षक ऐसा कुछ नहीं सिखाएगा जो असत्य हो। और यदि यीशु लोगों को भ्रमित कर रहा था चाहे जानबूझकर, या क्योंकि वह स्वयं भ्रमित था, तो हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते हैं कि आश्चर्यकर्म करने की उसकी सामर्थ्य परमेश्वर की ओर से थी। यह मान लेना अधिक तर्कसंगत होगा कि उसकी सामर्थ्य शैतान की ओर से थी।

लुईस ने स्वयं अपने तर्क का निष्कर्ष इस प्रकार निकला है कि: "फिर, हम एक भयावह विकल्प का सामना कर रहे हैं। यह व्यक्ति जिसके बारे में हम बात कर रहें हैं या तो जो वह कह रहा है वही था (या है) या फिर एक पागल, या उससे भी कुछ बुरा। अब मुझे यह स्पष्ट दिख रहा है कि वह न तो पागल था और न ही कोई दुष्ट; और इसके परिणामस्वरूप, यह कितना ही अजीब या भयानक या असंभव क्यों न लगे, मुझे इस विचार को स्वीकार करना ही होगा कि वह परमेश्वर था और है। परमेश्वर इस शत्रु-अधिकृत संसार में मनुष्य के स्वरूप में आया।"3

आप क्या कहते हैं कि यीशु कौन है - झूठा, पागल या प्रभु? यह उन प्रश्नों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर आप कभी देंगे।

पूछें और मनन करें

  • सी.एस. लुईस द्वारा प्रस्तुत तर्क के बारे में आपके क्या विचार हैं? आप उनके तर्क से सहमत हैं या असहमत? क्यों या क्यों नहीं?
  • आपको क्यों लगता है कि कुछ लोग यीशु को केवल एक महान व्यक्ति से बढ़कर कुछ और नहीं मानते हैं?

निर्णय लें और करें

यदि आपने यीशु द्वारा पूछे गए इस प्रश्न का उत्तर कभी नहीं दिया है कि "तुम मुझे क्या कहते हो?," तो बहुतअधिक देर होने की प्रतीक्षा न करें। जैसे इस पाठ में हमें दिखाया गया है यीशु ने हमारे लिए ढेर सारे विकल्प नहीं छोड़े हैं। निर्णय न लेना भी, निर्णय लेना होता है अर्थात् टालें नहीं। इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में दिए 'परमेश्वर को जानना' खंड में जाकर समस्या को एक बार और सदा के लिए सुलझा लें। अंततः, या तो हमें परमेश्वर के पुत्र होने के उसके दावे पर  विश्वास करना चाहिए या फिर हमें उससे खारिज कर देना चाहिए। यदि हम उस पर विश्वास करते हैं, तो हमें अपना सिर झुकाना चाहिए और उसके आराधना करनी चाहिए। मार्गदर्शिका के अंत में दिए 'परमेश्वर में बढ़ना' खंड में जाकर पढ़ें , और उसके साथ और अधिक घनिष्ठता से चलें।

Footnotes

1C. S. Lewis, Mere Christianity. (© Macmillan Publishing Co, New York, NY, 1952, pp.55–56).
2Josh McDowell, More Than a Carpenter. (© Tyndale House, 1977). This classic by a Master Apologist is still consistently one of the top titles in apologetics! McDowell gives readers insights into the events surrounding Christ’s life, asking whether they could all be explained by coincidence. He asks the hard questions about the reliability of biblical records, psychological profiles of disciples and apostles (would they die for a lie if the stories are not true?), and whether or not Jesus can be considered simply a good man who spoke some wise words.
McDowell is also well–known for another quote from this book, one that is applicable to this lesson: “Why don’t the names of Buddha, Mohammed, Confucius offend people? The reason is that these others didn’t claim to be God, and Jesus did.”
3C.S. Lewis, Mere Christianity. (© Revised edition, New York, Macmillan/Collier, 1952, p.55 ff.).

Scripture quotations taken from the NASB