पुनरुत्थान - तथ्य या मनगढ़ंत?

पुनरुत्थान का प्रमाण


प्रस्तावना

"सब्त के दिन के बाद सप्‍ताह के पहले दिन पौ फटते ही मरियम मगदलीनी और दूसरी मरियम कब्र को देखने आईं। और देखो, एक बड़ा भूकम्प हुआ, क्योंकि प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा और पास आकर उसने पत्थर को लुढ़का दिया, और उस पर बैठ गया। उसका रूप बिजली का सा और उसका वस्त्र पाले के समान उज्‍ज्वल था। उसके भय से पहरुए काँप उठे, और मृतक समान हो गए। स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, “मत डरो , मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को जो क्रूस पर चढ़ाया गया था ढूँढ़ती हो। वह यहाँ नहीं है, परन्तु अपने वचन के अनुसार जी उठा है।"

– मत्ती २८:१-६

"यीशु की क्रूस पर चढ़ाए जाने के तीसरे दिन की सुबह, कुछ स्त्रियाँ कब्र पर गईं। वे सबसे पहले नहीं आई थीं। उससे पहले बड़ी भोर को स्वर्ग से परमेश्वर का एक स्वर्गदूत वहाँ पर उतर आया था। जो पहरेदार कब्र की रखवाली कर रहे थे वे बहुत डर गए और स्वर्गदूत ने उस पत्थर को हटा दिया जिससे प्रवेश-द्वार बंद था। कब्र खाली थी। जैसे की उसने वचन दिया था, यीशु मृतकों में से जी उठा था।

 ... अगले चालीस दिनों तक यीशु शारीरिक रूप में लोगों पर प्रकट होता रहा। कुछ के साथ वह चला फिरा और बातें की। कुछ के साथ उसने भोजन किया। एक बार वह पाँच सौ से अधिक लोगों पर प्रकट हुआ।"

– "आशा" अध्याय ११

ध्यान से देखें और विचार करें

यीशु के पुनरुत्थान का ऐतिहासिक तथ्य कितना महत्वपूर्ण है? प्रेरित पौलुस ने लिखा कि यदि यीशु मृतकों में से नहीं जी उठा, तो हमारा विश्‍वास व्यर्थ है! (1 कुरिन्थियों 15:17)| आने वाले पाठों में जब हम पुनरुत्थान के महत्व पर विचार करेंगे, तब हम पौलुस के इस प्रभावपूर्ण कथन का और गहराई से मूल्यांकन प्राप्त करेंगे। किन्तु आइए, इस ठोस प्रमाण की जाँच करने से आरंभ करते हैं कि यीशु का पुनरुत्थान वास्तव में घटित हुआ था, और यह कि यह केवल एक मनगढ़ंत बात या मिथक नहीं है जैसा कि कुछ आलोचक दावा करते हैं।

इस विषय पर अनेक संस्करण लिखे गए हैं, किन्तु हमारे अध्ययन के उद्देश्य के लिए, हम प्रमाण के चार आयामों पर विचार करेंगे:

  • खाली कब्र : यीशु ने यह उद्घोषना की थी कि वह मृतकों में से जी उठेगा। यह जानते हुए, इब्रानी धार्मिक अगुवों को डर था कि कोई उसकी लोथ को चुराने का प्रयास करेगा और फिर पुनरुत्थान की अफ़वाह फैला देगा। इसलिए उन्होंने राजयपाल को कब्र पर पहरेदार नियुक्त करने तथा पत्थर पर मुहर लगाने के लिए राज़ी कर लिया (मत्ती  27:62-66)। राज्यपाल के पहरेदार कब्र की रखवाली करने के लिए मुस्तैद थे क्योंकि वे जानते थे कि यदि वे आदेश का पालन करने में विफल रहे तो मृत्युदंड मिलना निश्चित है। आधिकारिक मुहर तोड़ने पर भी मृत्युदंड निश्चित था - फिर भी कब्र खाली थी!
  • चश्मदीद गवाह: बाइबल में पुनरुथित यीशु की विभिन्न लोगों (उनके चेलों के निकटतम आंतरिक समूह सहित जो उसे घनिष्ठता से जानते थे) के साथ कई मुलाकातें दर्ज़ हैं (मत्ती 28:9-10, मत्ती 16:20; मरकुस 16:12-18; लूका 24:13-43; यूहन्ना  20:14-18, यूहन्ना  26:29; यूहन्ना  21:15-23)। एक अवसर पर, यीशु, एक ही साथ ५०० लोगों के समूह के समक्ष प्रकट हुआ (1 कुरिन्थियों 15:6)|
  • चेलों की प्रतिक्रिया : खाली कब्र और चश्मदीद गवाहों की रोशनी में कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि यीशु के पुनरुत्थान का विवरण एक सावधानीपूर्वक रची गई साजिश थी। किन्तु यह तर्क अपना प्रभाव खो देता है जब आप पुनरुत्थान के बाद यीशु के चेलों के जुनून से भरे प्रतिबद्ध जीवन पर विचार करते हैं। यीशु का अनुसरण करने वालों में से बहुत से लोग, जिसमें उसके चेले भी शामिल थे (बारह में से एक को छोड़कर), यीशु में अपने दृढ़ विश्वास के लिए शहीद हो गए। अन्य लोगों से बढ़कर, इन लोगों को पता होता यदि पुनरुत्थान एक छल होता। फिर भी उन्हें उबलते हुए तेल में डाला गया, आरी से काटा गया, क्रूस पर उल्टा लटकाया गया, शेरों के सामने फेंक दिया गया, और भाले से भेदकर से मार डाला गया। कुछ लोग जिस पर वे विश्वास करते हैं कि सत्य है, उसके लिए प्राण न्योछावर करने के लिए भी तैयार होते हैं, किंतु केवल एक पागल और मूर्ख व्यक्ति ही उस के लिए जान देगा जो वह जानता है कि झूठ है।
  • विशेषज्ञों की गवाही : कानून की अदालत में, किसी प्रमाण की जाँच करने के लिए विशेषज्ञों को बुलाया जाता है। हर समयकाल में अनगिनत विद्वानों ने पुनरुत्थान के प्रमाणों को तौला और जाँचा-परखा है और इसे इतिहास का एक सत्य तथ्य माना है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, इस विषय पर कई संस्करण लिखे गए हैं। उदाहरण के लिए, थॉमस अर्नोल्ड, ऑक्सफोर्ड में आधुनिक इतिहास के रॉयल प्रोफेसर और रोम का इतिहास पुस्तक के लेखक के निम्नलिखित उद्धरण पर विचार करें: "मुझे कई वर्षों से इतिहास के कुछ अन्य अति महत्त्वपूर्ण समयों के बारे में अध्ययन करने के लिए और उनके बारे में लिखने वालों के प्रमाणों को जाँचने-परखने और तौलने के लिए उपयोग किया गया है, और मैं मानवजाति के इतिहास के किसी भी ऐसे तथ्य को नहीं जानता हूँ, जो एक निष्पक्ष जिज्ञासु की समझ के लिए, परमेश्वर द्वारा दिए उस महान चिन्ह कि यीशु मसीह मरा और मृतकों में से पुनः जी उठा, की तुलना में बेहतर और हर प्रकार के ठोस प्रमाण से साबित होता हो।"

पूछें और मनन करें 

  • क्या आपको लगता है कि उपर्युक्त प्रस्तुत प्रमाण पुनुरुथान को एक ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं? क्यों या क्यों नहीं? यदि आप सोचते हैं कि ये अपर्याप्त हैं, तो वह क्या बात है जो इसे एक तथ्य के रूप में स्थापित कर पाएगी?
  • यीशु मृतकों में से जी उठा, इस पर विश्वास करने के लिए परमेश्वर हमें इससे बढ़कर और क्या पर्याप्त प्रमाण दे सकता था?
  • क्या कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें आज आप तथ्य के रूप में स्वीकार करते हैं, पर जिनके बारे में आपके पास वास्तविक प्रमाण यीशु के पुनरुत्थान के प्रमाणों की तुलना में कम थे?

निर्णय लें और करें 

चेलों में से एक चेले, थोमा, को इस बात पर विश्वास करने में कठिनाई हो रही थी कि यीशु मरे हुओं में से जी उठा था। थोमा ने अन्य चेलों से कहा कि वह तब तक विश्वास नहीं करेगा जब तक कि वह स्वयं यीशु के घावों को छू नहीं लेता। तब यीशु उसके समक्ष प्रकट हुआ और उसने थोमा को ऐसा करने का अवसर दिया। थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!”

अधिकांश बाइबल विद्वानों का मानना है कि परमेश्वर के प्रतिज्ञा किए हुए छुड़ानेवाले का प्रचार करते हुए थोमा पहले फारस देश गया और वहाँ से भारत गया। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह चीन तक चला गया था।  यह भी माना जाता है कि कई लोगों को विश्वास में लाने में अगुवाई करने के बाद, वह भारत में ही शहीद हुआ था। 1

थोमा एक ऐसा व्यक्ति था जिसने संदेह किया था। किन्तु पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद उसने स्वयं को यीशु के लिए पूर्णतया समर्पित कर दिया। क्या आप यीशु के बारे में आश्वस्त हैं? यदि हाँ, तो आपने अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया यीशु के समक्ष कैसे व्यक्त की थी?

कई लोगों को यीशु को लेकर संदेह रहा है (अभी भी है)। कुछ लोग थोमा की तरह सच्चे होते हैं, वे लोग उस बात को सहृदय स्वीकार नहीं कर पाते हैं जो उनका मस्तिष्क अस्वीकार कर देता है। मगर, अन्य लोग, जिसे वे संदेह कहते हैं उसके पीछे छुपे रहते हैं ताकि उन्हें उस बात का सामना न करना पड़े जो वह जानते हैं कि सत्य है। यदि इनमें से कोई भी एक प्रकार आप का वर्णन करता है, तो यह जान लें कि सभी आलोचकों का उद्गम स्थल एक ही है।

परमेश्वर के साथ सच्चे रहें! थोमा अपने संदेह के बारे में सच्चा था और परमेश्वर उससे वहीं मिला जहाँ उससे मिलने की आवश्यकता थी।

"... तुम मुझे ढूँढ़ोगे और पाओगे भी; क्योंकि तुम अपने सम्पूर्ण मन से मेरे पास आओगे।" (यिर्मयाह 29:13)

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Footnotes

1William McBirnie, “Thomas” from his book The Search for The Twelve Apostles. (© 2006 BiblePath.Com, 2006). (http://www.biblepath.com/thomas.html). Retrieved November 27, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB