परमेश्वर के मेमने ने फसह का पर्व मनाया

उसने कहानी लिखी और फिर स्वयं को उसके अधीन कर दिया।


प्रस्तावना

जब घड़ी आ पहुँची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। और उसने उनसे कहा, "मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊँ। क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि जब तक वह परमेश्‍वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊँगा।" तब उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया और कहा, "इस को लो और आपस में बाँट लो। क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि जब तक परमेश्‍वर का राज्य न आए तब तक मैं दाख का रस अब से कभी न पीऊँगा।" फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, "यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी जाती है : मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।" इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, "यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।"

– लूका २२:१४-२० 

"जब वे खा रहे थे तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष माँगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, "लो, खाओ; यह मेरी देह है।"फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, "तुम सब इसमें से पीओ, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।"

– मत्ती २६:२६-२८

और ऐसा हुआ कि यीशु, जिसको यूहन्ना ने परमेश्वर का मेमना कहा, फसह का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम गया... यीशु ने अपने शिष्यों को फसह का पर्व मनाने के लिए इकट्ठा किया। यीशु ने फसह की रोटी लेकर तोड़ी और कहा, "यह मेरी देह है, जो तुम्हें दी जाती है।" फिर उसने दाखरस का कटोरा लिया, जो उस फसह के मेमने के लहू को दर्शाता है जो इब्रियों ने अपने घर के दरवाजों पर लगाया था, और कहा, "यह मेरा लहू है जो बहुतों के पापो की क्षमा के लिए बहाया जाता है।"

– "आशा" अध्याय १०

ध्यान से देखें और विचार करें

पाठ ४३ से स्मरण करें कि परमेश्वर ने इब्री लोगों को फसह नामक एक वार्षिक पर्व स्थापित करने का निर्देश दिया था ताकि वे याद रखें कि कैसे परमेश्वर ने उन्हें मिस्र की बँधुआई से छुड़ाया था। जब मिस्र देश के शासक ने लोगों को जाने देने से इनकार कर दिया तो परमेश्वर ने देश के हर पहलौठे पुत्र पर मृत्यु भेजी थी, किंतु उसने उन घरों को "छोड़" दिया था जिनके प्रवेश द्वार पर मेमने का लहू लगा हुआ था। वे “लहू से ढँके हुए थे। अनेक इब्री लोगों ने अपने देश के मुख्य शहर यरूशलेम में फसह मनाने के लिए लंबी यात्राएँ की हैं। धरती पर अपनी सेवकाई के अंत के निकट के दिनों में यीशु अपने चेलों को फसह का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम ले गया।

बाइबिल में दिए विवरण के अनुसार  (निर्गमन  12:5-8,  संख्या  9:11-12), फसह के भोजन में तीन आवश्यक खाद्य सामग्री होती थी: भूँजकर रखा हुआ मेमने का मांस, अख़मीरी रोटी और कड़वे सागपात। इनमें से प्रत्येक खाद्य सामग्री आने वाली पीढ़ियों को यह स्मरण दिलाना था कि परमेश्वर ने मिस्र देश में उनके पूर्वजों को बंधुआई से छुटकारे के लिए क्या किया था।1

मेमना उन्हें उस निष्कलंक मेमने की याद दिलाएगा जिसका बलि चढ़ाया जाना आवश्यकता था, और उसके लहू को उनके घरों के प्रवेश द्वार पर लगाना था ताकि मृत्यु उन लोगों को "छोड़" दे जो उन घरों के भीतर थे। कड़वे सागपात उन्हें मिस्र के अधीन बँधुआई याद दिलाएँगे। अख़मीरी रोटी का दोहरा अर्थ था। पहला, क्योंकि इस रोटी को उठने में समय नहीं लगता था, इसने इब्री लोगों को याद दिलाया कि किस प्रकार उन्हें शीघ्रता से मिस्र से निकल जाना पड़ा था  (व्यवस्थाविवरण 16:3)। दूसरा, बाइबल में ख़मीर को पाप और भ्रष्ट कार्यों का प्रतीक माना गया है, यह अख़मीरी रोटी उन्हें एक ऐसे जीवन की याद दिलाएगी जिस पर पाप का अधिकार नहीं था। समृद्ध इतिहास और कल्पना की इस पृष्ठभूमि पर यीशु में अपने चेलों को फसह का पर्व मनाने के लिए इकठ्ठा किया और फिर आगे बढ़ कर इस पवित्र परंपरा को मूल रूप से एक नया आत्मिक अर्थ दिया।

जैसे फसह के निष्कलंक मेमने को इब्री लोगों को छुड़ाने के लिए बलि चढ़ाया गया, उसी प्रकार से वह एकमात्र जन, जिसे यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला 'परमेश्वर का मेमना" कहता है, अपनी पापरहित देह को मानवजाति के छुटकारे के लिए बलिदान चढ़ाएगा ...और यह कहते हुए उसने रोटी तोड़ी और उन्हें दी। जैसे फसह के मेमने के लहू ने इब्री परिवारों को ढाँप लिया था, उसी प्रकार से यीशु का लहू भी उन सब को ढाँप लेगा जो उसमें शरण पाना चाहते हैं, और पापों के दंड से बचा लेगा। ..और यह कहते हुए उसने उन्हें दाखरस दी। जैसे पुराने नियम में परमेश्वर ने इब्री लोगों से फसह का पर्व की परंपरा को सदा बनाए रखने के लिए कहा था, वैसे ही यीशु ने भी अपने चेलों से कहा था कि "मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।" उस शाम जिस बात की स्थापना यीशु ने की थी उसे आज प्रीति-भोज, प्रभु-भोज, या प्रभु की मेज़ के रूप में जाना जाता है। 1 कुरिन्थियों 11:23-26, में, हम देखते हैं कि यह कुछ ऐसा है जिसे यीशु ने उसके अनुयायियों द्वारा उसके पुनः आगमन तक नित्य पालन करने के लिए स्थापित किया था।

आज इस पाठ में जिन बातों पर हमने विचार किया है उनकी प्रतीकात्मकता और नाटकीय प्रभाव अद्भुत है। एक बार फिर से हम देखते हैं कि बाइबल केवल बुद्धिमानी भरी बातों और आत्मिक सच्चाइयों का अद्भुत संग्रह ही नहीं है। यह अब तक लिखी गई सर्वोत्तम उल्लेखनीय कहानी है। इसके बारे में सोचें - जिस एकमात्र जन ने इस कहानी को लिखा है, उसने स्वयं को इसमें लिखा है, इसके केंद्रीय पात्र के रूप में पिरोया और फिर स्वयं को इस कथावस्तु के अधीन कर दिया, मृत्यु की हद तक! और हालांकि इस कहानी का अंत पहले ही लिखा जा चुका है, किंतु इसकी कथावस्तु आज भी उजागर हो रही है। तब भी जब आप इन वचनों को पढ़ते हैं, परमेश्वर इस भव्य, अनंत कहानी में आपको भी एक पात्र प्रदान कर रहा है।

पूछें और मनन करें

  • उन चेलों के स्थान पर होने की कल्पना करें, जब यीशु अपनी देह के रूप में रोटी और अपने लहू के रूप में दाखरस चेलों को बाँट रहा था। वे क्या सोच रहे होंगे और क्या महसूस कर रहे होंगे? क्या जो कल्पनाचित्र यीशु ने सामने रखा था, वह आपको कुछ अजीब-सा लगा?
  • यदि आप प्रीति-भोज, प्रभु-भोज, या प्रभु की मेज़ में भाग लेते हैं, तो यह आपके लिए क्या महत्व रखता है? क्या यह एक पवित्र समय है या नियमित परंपरा है? वर्णन करें।
  • यदि बाइबल अब तक लिखी गई महानतम कहानी है, और अगर यह आज भी उजागर हो रही है, तो क्या आप इस कहानी में स्वयं को एक पात्र के रूप में देखते हैं? क्यों या क्यों नहीं?निर्णय लें और करें

निर्णय लें और करें

बाइबिल में क्रिसमस (बड़ा दिन) मनाने के लिए एक भी निर्देश नहीं दिया गया है, फिर भी क्रिसमस संसार में सबसे प्रसिद्ध परंपराओं में से एक है। अधिकांश लोग क्रिसमस के पर्व के लिए बड़ी उम्मीद से आते हैं। आज हमने जिस पर्व के मनाने के विषय में अध्ययन किया है उसका वर्णन चार सुसमाचारों में से तीन (मत्ती, मरकुस और लूका) और नए नियम के अन्य पदों में किया गया है। इस पवित्र परंपरा को स्वयं यीशु ने एक समृद्ध और अनंत नाट्य रचना के रूप में स्थापित किया था जिसमें केवल यीशु का अनुसरण करने वालों को ही सहभागिता का विशेषाधिकार प्राप्त होता है। इस परंपरा का महत्व और प्रतीकात्मकता आप में श्रद्धामय भय, आदर और प्रत्याशा का आह्वान करे।

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Footnotes

1Margot R. Hodson, Passover – Sacrificed for Us. (©A Feast of Seasons, Kregel Publications, 2001 in the USA). (http://www.hodsons.org/Afeastofseasons/id18.htm). Retrieved November 2, 2006.

Scripture quotations taken from the NASB