आदम और हव्वा की रचना – भाग १

वह क्या है जो एक मानव को अन्य सृष्टि से भिन्न करता है?


प्रस्तावना

"फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगने वाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें। तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।"

उत्पत्ति १:२६-२७

“और छटे दिन, जब परमेश्वर बाकि सब कुछ रच चुका था उसके बाद, उसने प्रथम मनुष्य को बनाया– भूमि की मिट्टी से। फिर उसने जीवन का श्वास उसके नथनों में फूँका। और मनुष्य जीवत प्राणी बन गया। परमेश्वर ने उसे बुलाया– आदम।और मनुष्य के शरीर से ही परमेश्वर ने पहली स्त्री को बनाया।आदम ने उसे बुलाया– हव्वा। और आदम और हव्वा अन्य सारी सृष्टि से भिन्न थे... क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें रचा था– अपने ही स्वरूप में।“

– "आशा",अध्याय १ 

ध्यान से देखें और विचार करें

उपर्युक्त दिए गए "आशा" के अंश और बाइबल के पद में इस बात पर ध्यान दें कि मनुष्य को "परमेश्वर के स्वरूप" में बनाया गया। "परमेश्वर के स्वरूप" में बनाए जाने का क्या अर्थ है? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए लोग अक्सर मनुष्यों में कुछ ऐसी विशेषताओं का उल्लेख करते हैं जो उन विशेषताओं के समान हैं जो वे परमेश्वर में पाते हैं। जैसे- रचनात्मक होने, तर्क करने, चयन करने, संवाद करने और जटिल भावनाओं का अनुभव करने की क्षमता।

कुछ लोग यह तर्क देंगे कि कोई-कोई जानवर (किसी न किसी हद तक) इन "परमेश्वर-जैसी" विशेषताओं का प्रदर्शन करते हैं। वे यह भी कहेंगे (सही हो या गलत) कि प्राथमिक स्तर पर मनुष्य और जानवरों के बीच अंतर इस बात का नहीं है कि उनका तत्व और प्रकृति भिन्न है बल्कि उनकी बीच तो बस श्रेणी का ही अंतर है, और यह भी कहेंगे कि मनुष्य मात्र   अत्यंत विकसित जानवर हैं। फिर भी बाइबल कहती है कि "परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया", यह एक ऐसी पहचान है जो उसने किसी और प्राणी के लिए नहीं दी।

उत्पत्ति २:७ इस मुद्दे में कुछ महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है:

"और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।"

इस पद में इस बात पर ध्यान दें कि भूमि के मिट्टी से आदम की शारीरिक रचना करने के पश्चात परमेश्वर ने "उसके नथनों में जीवन का श्वास फूँक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया।" जिस इब्रानी शब्द (नेफेश) का अनुवाद यहाँ पर "प्राणी" के रूप में किया गया है, "आत्मा" के रूप में भी किया जा सकता है। "आत्मा" से आशय है एक व्यक्ति का गैर-भौतिक या अभौतिक भाग। कुछ लोग मानते हैं कि जानवरों में भी आत्मा होती है। ऐसा है या नहीं यहाँ मुद्दा यह नहीं है। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि बाइबल के अनुसार जिस रीति से मनुष्य ने आत्मा को प्राप्त किया है, वैसे केवल मनुष्य ही ने किया था । उसने इसे सीधे स्वयं परमेश्वर से प्राप्त किया था !

परमेश्वर ने कहा और संसार अस्तित्व में आ गया। परन्तु मनुष्य को उसने एक अलग रीति से बनाया। उसने पहले मनुष्य के अभौतिक भाग को मिट्टी से बनाया था। मानव आत्मा को रचा नहीं गया है उसे प्रदान किया गया है। भूमि की मिट्टी से परमेश्वर ने आदम के शरीर की रचना की लेकिन उसका आत्मा परमेश्वर का श्वास था। किसी भी अन्य प्राणी के विषय में यह सच नहीं है। यह ईश्वरीय प्रदानता या ईश्वरीय आधान ही परमेश्वर की समानता में मनुष्य के स्वरूप और उसके रचनात्मक होने, तर्क करने, चयन करने, संवाद करने और जटिल भावनाओं का अनुभव करने की क्षमता का स्रोत है।

जब परमेश्वर ने जीवन का श्वास मनुष्य के भीतर फूँका, तो परमेश्वर ने कुछ ऐसा हस्तांतरित किया जिसने मनुष्य को स्वयं परमेश्वर के स्वरूप में रच दिया! यह ईश्वरीय श्वास ही वह है जो मनुष्य को शेष सृष्टि से भिन्न करता है - और यही वह है जो हर पुरुष या स्त्री को अतुल्य मूल्य प्रदान करता है।

पूछें और मनन करें 

कागज़ के मुद्रा नोट का अपने आप में कोई मूल्य नहीं होता है। उसका मूल्य इस तथ्य से आँका जाता है कि वह किसी बहुमूल्य वस्तु, प्रायः सोना या चांदी का सूचक है, जो राजकोश की तिजोरी में सुरक्षित रूप से रखा होता है। मुद्रा नोट, एक मायने में, उस सोने या चांदी का मुद्रित "स्वरूप" है। इसी तरह लोग - सभी लोग - बहुमूल्य हैं क्योंकि वे परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं जिनका मूल्य इतना अधिक है कि उसे मापा नहीं जा सकता है। बहुत से लोग मानते हैं कि उनका मूल्य और महत्व उनकी उपलब्धि, धन दौलत, प्रसिद्धि, और रंग रूप, आदि जैसी वस्तुओं पर आधारित है किंतु बाइबल के अनुसार हम सभी बहुमूल्य हैं क्योंकि हम परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं।

  • क्या परमेश्वर के अलावा कुछ ऐसा है जिसके कारण आप स्वयं को बहुमूल्य समझते करते हैं? आपकी निजी महत्व की भावना का क्या होगा यदि वह वस्तु आपसे छीन ली जाए?
  • मानव इतिहास मनुष्य की मनुष्य के प्रति अमानवीयता के उदाहरण से भरा हुआ है: युद्ध अपराध, नरसंहार, आतंकवाद, आदि। यदि पृथ्वी पर हर एक व्यक्ति यह मान ले कि पृथ्वी पर हर दूसरा व्यक्ति अति-बहुमूल्य है क्योंकि वह परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है, तो इससे क्या बदलाव आएगा?
  • यदि कोई व्यक्ति वास्तव में विश्वास करें कि वह परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है तो उसकी आत्मा-छवि पर क्या असर पड़ेगा?
  • यह जानकर कि आप परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं, आप पर क्या असर पड़ता है या क्या असर पड़ना चाहिए?

निर्णय लें और करें

भजन संहिता १३९:१३-१७ से उद्घृत निम्नलिखित पदों को पढ़ें।संहिता १३९:१३-१७ .

"मेरे मन का स्वामी तो तू है;

तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा।

मैं तेरा धन्यवाद करूँगा, इसलिये कि मैं

भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूँ।

तेरे काम तो आश्‍चर्य के हैं,

और मैं इसे भली भाँति जानता हूँ।

जब मैं गुप्‍त में बनाया जाता,

और पृथ्वी के नीचे स्थानों में रचा जाता था,

तब मेरी हड्डियाँ तुझ से छिपी न थीं।

तेरी आँखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा;

और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे

वे रचे जाने से पहले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।

मेरे लिये तो हे परमेश्‍वर,

तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं!

उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है!"

यद्यपि "आत्म-छवि" शब्द का ज़िक्र बाइबल में नहीं हुआ है, फिर भी किसी व्यक्ति के पास परमेश्वर की जितनी अधिक सच्ची छवि (या समझ) होगी, उतनी ही अधिक सच्ची छवि वह स्वयं के लिए भी रखेगा। जब हम सच में यह समझ लेते हैं कि परमेश्वर ने हमें रचा है (जैसा कि हम भजन  में पढ़ते हैं संहिता १३९), और परमेश्वर जो भी करता है वह परिपूर्ण होता है  (व्यवस्थाविवरण ३२:४), तो हम निश्चित रूप से एक सकारात्मक आत्म-छवि रखेंगे। एक अच्छी आत्म-छवि का आरंभिक बिंदु एक अच्छी परमेश्वर-छवि है। निश्चय करें कि जिस रचयिता ने आपको रचा है, आप उसके प्रति अपनी समझ को बढ़ाएँगे और ऐसा करते हुए आप स्वयं को बेहतर रीति से समझेंगे।

Scripture quotations taken from the NASB